मनोहर - प्रकाश | Manohar - Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नाॉयका वणेन] मने।हर प्रकाश । ११
कोाई भी शेसो नहीं. है जे! मुखकानि रूप मिंठाई से मेल नहीं बिकता है
अथोत् सब बिकते हैं | यहां स्व॒र को श्लेषता कर के अथे फिरता है यातें
बक्रोक्ति ।
दाहा ।
वक्रोक्ति खर श्लेष सौं, ञ्थे फिरे जब हाय ।
रसक अपूरभ्न हाजु पिय, बुरो कहत नहीं काय ।1 ११
| अथेत् मुसक्ानि रूप मिठाई के लेकर तन सन घन और प्रान
सर्वेस्थ देता है यातें मसकानि रूप सिठाई पछटे विकना लिख यहांपरि-
बछती अलंकार हैः. «
देशहा ।
परिछत्ति पलटो कीजिये, 'थोरो' दे बहु लेय ।।
' हति अलंकाररतनाकर ॥1
और सस््पूण कवित्त के अथे में विचित्र अलंकार हाता है मोल
बिकने का अथे आधीोन हेाना यह विपरोतता करके इच्छा फल प्रति सु-
न्द्र नायका को प्रीति द्ृढ करता हैः-
दाहा।
हू च्छा फल विपरीति तें, कीजे जतन विचित्र ।
इति अलंकार रंत्नाकर ।।
दोदा ।
तरुन अरुन एडीन के, किरन समूह उदोत ।
वबेनीं मंडन मुक्ति के, पुंज गुज रुचि होत ॥ ४ ॥
मूल अथे । तरुन कहिये सूर्य तिनकी 'किरनके समृह करके अरुनच
जे लाल एडोन के अथे नकार से बहु बचन हराकर एडियां देने होती हैं
सिन के उद्योत कहिये प्रकाश ताके प्रतिबिंब करके बैनी संडन जे बैनी
* में सहेली वा फूमर लगाते हैं इस गहने का नाम बैनी संहन भी है से
तिन में जे लगे हैं मातियों के पुज कहिये गुच्छे सो गुज कहिये
ज्
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