षट्खण्डागम | Shatkhandagam Vedanakshetravidhan Vedanakalvidhan Pustak -11 Khand - 4 Volume - 5 ,6

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Shatkhandagam Vedanakshetravidhan Vedanakalvidhan Pustak -11 Khand - 4 Volume - 5 ,6 by पंडित हीरालाल जैन - Pandit Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४, है, ५, है.].|$वैयणमद्दाहियारे-वेयणसतविहाण पदंमीमासा [.३ हवति । एत्थ अदयारा तिण्णि चेव किमई परूविज्ज॑ति ! ण, अण्णेसिमेत्थ-संमवामावादो । कुदो 1 [ण] संखा-द्वाण-जीवसमुदाद्वाराणमेत्थ सेमवो, उक्कस्साणुक्कस्स-जहण्णाजहण्ण॑मेद्‌- भिण्णसामिताणियोगदररे एदेसिमतब्मावादो । ण ओज-जुम्माणिओगद्दारस्स -वि ,संभवो, , तस्स् पदमीमांसाए पवेसादो । ण शुणगाराणिभोगद्रारस्स वि सेभवो, तस्स अप्पाबहुए पंवेसादों। तम्हा तिण्णि चेव अणिओगद्दाराणि दोति त्ति पिद्धे । पदमीमांसा सामित्तं अपाबहुए त्ति ॥ २॥ पढमे .चेव पदभीमांसा किमहमुच्चदे ? ण, पंदेसु अपवंगएसु सामित्तपपाबहुआएणं परूवणोवायाभावादो । तदर्णतर सामित्ताणिओगद्ारमेव किमई वुच्चंदे ? ण, अगेवंगए पदप्पमाणे तदप्पावहुगाणुववत्तीदी । तम्दा एसेव भद्दियारविण्णासक्कमों इच्छियव्वो, णिखज्जत्तादो । पदमीमांसाए णाणावरणीयवेयणा खेत्तदों कि उसका कि- मणुक्कस्सा कि जहण्णा किमजहण्णा 7 ॥ ३ ॥ ककमलनथ शंका-- यहां केवल तीन ही अधिकारोंकी प्ररूषणा फिसलिये की जाती है। समाधान-- नहीं, क्‍योंकि, और दूखरे अधिकार यहां सम्भव नहीं हैं। कारण कि संख्या, स्थान और जीवसमुदाहार ते| यहां सम्भव नहीं है, क्‍योंकि, इनका भम्तभाँवे उत्कृष्ट, अनुत्तए, जघन्य व भ्जघन्य भदसे भिन्न स्वामित्वभज्योगद्ारम होता-है। ओज-युग्मालुयोगठार थी सम्भव नहीं हैं, क्‍योंकि, उसका प्रवेश पदमीमांसामें है। गुणकार अनुयोगठार भी सस्भव नहीं है, क्‍योंकि, उसका प्रयेश जच्पबडुत्वाँ दै। इस कारण तीन ही अनुयोगद्वार एँ, यद्द सिद्ध है। पदमीमांसा, स्वामित्व और अत्पवहुत्व, ये तीन अनुयोगद्वार यहां ज्ञातव्य हैं ॥ २॥ शका-- पद्मीमाँसाके पहिले ही किसलिये कद्दा जाता दे! -समावान-- चूँकि पदोका शान न दोनेपर स्वामित्व और अल्पवहुत्वकी प्र पणा की नहीं जा सकती, अत एव पहिले पदमीमांसाकी भरूपणा क़ी जा रही दे. शका-- उसके पश्चाद्‌ स्थामित्व अजुयोगद्वारको ही किसलिये कहते हैं! समाधान-- नहीं, क्योंकि, पदप्रमाणका झ्लान न .होनेपर उन्तका अव्पवषवत्व बन नहीं सकता। इस कारण निर्दोष होनेसे हक अधिकारोंके इसी विस्यासकर्मकों 'इथीकार करना चाहिये | पदमीमांसामें-- ज्ञानावरपीयकी वेदना क्षेत्रकी भ्पेक्षा क्या उत्कृष्ट दे, क्‍या - अनुत्कृष्ट है, क्या जपन्य है, और क्या अजपन्य है | ॥.३॥ ९ हाप्रती ' पे [से] ३ * इति पाठ: | -२ भतिषृ ' पदुणाव|यामागादों ' हति पाठ।।




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