मनोनिग्रह मंत्र | Manonigrah-mantra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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इंद्रियोंका राजा मन जब बशमें द्वोता है, उसकी छोटा जब समाप्त
दोती है तब शेष इंद्रियें कुछ भी नहीं कर सकती हैं । श्री
चारित्रचक्रे4्ति ;:: प्रातःप्मरणीय' पूंज्यपाद: ाचार्य - शांतिसागर
मद्दाराज सदश बंदनीय विभूति व उनके शिष्यगण धन्य हैं
जिन्होंने ऐपे प्रतल मनको अपने वशमें कर लिया है। यही
कारण है उनकी घीतरागताकी मान्ना बढती जाती है:।
श्री परमपूज्य, ग्रात्/प्तारणीय, विश्ववंध, विद्ृष्छिरोमणि
आचार्य कुंधुप्तागरंजी मह्षाराजेत उस मनकी वशंमें कर अध्या-
बिक जीवनमें विशुद्धि प्रा की दे | उनकी अच्छीतरह स्वानुभव,
ग॑म्य॑ विषय द्योगया दे कि मनको वशों। किये :विना यह प्राणी .
आत्म राज्यको प्राप्त नहीं कर संकत्ता है | इसलिए भव्य जीवॉके
हितको लक्ष्यमं रखते हुएं पूज्येश्रीने इस प्रथका निर्माण किया है|
विश्वोद्धार-
पेज्यश्रीकों ज्ञान १ वैराग्य इतना बंढ गया- हैं कि उससे
अंत्स्प प्रांणियोंक। उद्धार हो रद्दा है | बाल्यंत्रे ही उत्तम संगति'
उत्तम सरकार, याग्य मीत्ता-पिताआका' 'डेपदेश, सदगुरुओंकां '
संमागम-होनेसे यह मनुष्य किस उच्च ओदरश पर पहुँच “जाता
है एवं लोकवंध द्वोता है इसके लिए आचार्य श्रीक्षा 'उदादरंण
पयाप्त हैं॥ जनेक भवोंसे जिंन््दोंने अंभ्यास॑ पूर्वक संसांरकें स्वरूप
का अध्ययन किया वे ही संबेग ओर निर्वधग भावनासे: युक्त ह्वीकर'
छोककी भी संपेथका प्रदर्शन करते हैं। अंचार्य श्रीके जीव॑नम :
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