हिन्दी प्रेमगाथाकाव्य - संग्रह | Hindi Premagathakavya - Sangrah

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Hindi Premagathakavya - Sangrah by गुलाबराय - Gulabray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेममार्गी कवि २९, मगावती को तथा रक्मिणी को साथ लेकर अपने नगर पहुँचा। वहां आखेट में हाथी से गिरकर उसकी मृत्यु हो गई। इसमें प्रेम-मा्ग की कठिनाइयों का अच्छा द्ग्द्शंन कराया गया है और बीच में सृफी सिद्धान्तों की भी कल्षक दिखाई गई है । इस परम्परा मे मंझन, जायसी, उसमान (चित्रावल्ली' के रचयिता), नूर मुहस्भद्‌ ((इन्द्रावती' और 'अनु- _रगबाँछुरी' के रचयिता) तथा शेख निम्तार (“थूसुफ जुलेखा' के रचयिता) आदि कई कवि हुए। कुछ हिन्दुओं, जैसे पंजाबी कवि सूरदास, तथा कुशल- ताभ आदि ने भी इसी शैज्ञी में प्रेमाल्यान लिखे हैं। हम ऊपर कह चुके है कि कहीं तो इन्होंने हिन्दुओं गाथाश्रों की की कहानियां अपने ढंग से कहीं। ढंग से यहां विशेषषाएं. मतलब है इनकी रचनाओं के ढाँचे और वर्णेन- शैज्ञी से। भारतीय साहित्य में प्रबंध-काव्यों की जो सगबद्ध प्रथा पुरातन काल से चली आ रही थी उससे इन्होंने काम नहीं लिया। इन्होंने फारसी की मसनवियों को आदर्श बनाया। इनमें विस्तार के अनुप्तार कथा सर्गों या अध्यायों में विमक्त नहीं होती। एक घिरे से इनका क्रम अखंड-रूप से बरात्रर चल्ला जाता है, केवल कहीं-कहीं घटनाओं या प्रसगों का उल्लेख शीषेकों के रूप में दे दिया जाता है, जैसे--'सात समुद्र खंड', 'राजा गढ़ छेंका खंड', या 'राजा बादशाह युद्ध खंड” इत्यादि। मसनवियों की रचना के संबध में कुछ विशेष साहित्यक परम्पराओं के पालन का प्रतिबंध नहीं होता। इनमें केवल इतना ही आवश्यक होता है कि सारी रचना केवल एक ही छुंद में हो, पर कथावस्तु के संबंध में एक परम्परा का पालन अवश्य करना पड़ता था। आरंभ में परमेश्वर, नबी और तत्कात्ञीन बादशाह की स्तुति मसनवियों में अनिवायें समझी जाती थी।' प्रायः सभी ने अपने गुरुओं का तथा अपने जन्मस्थान आदि का भी उल्लेख किया है। इस परम्परा का पालन जायसी और ,कुतुबन आदि सभी प्रेमगाथाकारों ने नियम से किया है। छंद भी इन लोगों ने आद्योपांत दोहा-चौपाई ही (साव-सात या कहीं-कहीं नौ-नौ




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