कर्मकाण्डचन्द्रिका | Karmkandchandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पं. देवदत्त शर्मा - Pt. Devdutt Sharma
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रामचन्द्र - Ramchandra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वस्तिवांचलस् .' ' १६
पदा०--हे सगवन ! (-ऋजणूथतां ) सरलतया छाचरण करने वाले
( देचानाम ) विद्वानों को ( भद्ठा ) कल्याण करने वाली ( खुमतिः ) अच्छी बुद्धि.
(मं) हसको ( अभि, निषर्तताम् ) प्राप्त दो, और (देवानां, रातिः) विद्वानों का
विद्यादि पदार्थो का दान “भाप्त दो? ( देवानां ) चिद्धानों के ( सख्यम् ) मित्र
भाव को ( वयं ) हम लोग ( उपसेदि्म ) पाप्त हो, जिलसे वे ( देवाः ) विद्वान
लोग ( नः ) इमारी ( आयु: ) श्रवस्था को (जौवले) दीध॑कालपर्य्यन्त जीने के
लिये ( प्र, तिरम्तु ) पढ़ावे ।
साधा०--इ मंत्र में विद्ञानों के सत्संग दारा आयुवुद्धि की प्रार्थना
की गई है कि हे परमपिता परमात्मा ] आप ऐसी रूपा फर्र कि सदा बाय विद्वानों
की कल्याणकाश्क शंभवुद्धि हमें प्राप्त दो, अर्थात् हम लोग कर्मकारडी, अजु-
छाती तथा परमात्मपरायण विद्धा्ों फे अज्ञुगामी दो, और उनसे खदा मैची
भाष से यर्ते जिससे थे प्रसन्ष दो दीर्घजीची दोने का उपदेश कर, यायां कही कि *
ये हमें अह्मचय्ये पोलन फरने की विधिवतलावे जिससे हम पूर्ण आयु चाले हो।॥
तमीशानं जगतस्तस्थुपस्पतिं धिय॑ जिन्वमवसे हमहेंवयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसदबृधेर्राक्षता पायुरूव्यः स्वस्तये ॥२४॥
पद०--(चर्य ) दम लोग ( इशानम् ) ऐश्वय्यंवाले ( जगवस्तरुथुषध्पति )
चर और अचर जगत् के पति ( घिय॑, जिन्वम् ) घुद्धि से प्रलत्ष करने वाले
परमांत्या की (अपसे ) अपनी रच्चा फे लिये ( हमद्दे ) स्तुति करते हैं, ( यथा )
जैसे कि वह ( पूषा ) पुष्ठिकर्ता ( चेदसाम् ) धर्नों की ( चथे ) बद्धि फे लिये
( अखत् ) दो, ( रक्षिता ) खामान्यतया रक्षक, और (.पायुः ) विशेषतया रक्तक
.( अदृब्धः ) कार्यों का साधक परमात्मा € स्वस्तये ) कल्याण के लिये द्वो “चेसे
दी दस स्तुत्ति करते छे? | .
भाषा० -इम लोग पेश्वर्य्यसस्पन्न, चराचर जगत के स्वामी तथा
० मेघांदुद्धि दृए्या भराप्त दोने योग्य परमात्मा फी स्तुति करते हैं, ताकि वद पुष्टि
कारक पदार्थों से हमारी रच्ता फर, और सब कालों में रच्तक परमात्मा विशेष-
- शया इमाओे कार्यों को सिद्ध. करते हुए लदा कल्याणकारी दे ॥
स्वस्ति न इन्द्रो चृदुश्रवाः स्वृस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्तिनस्ताक्ष्यों अरिष्दनेमिःस्वस्तिनोबृहस्पतिदंधातु ॥
_ पदृ(०--( इद्धअवाः ) बहुत फीति चाला ( इन्द्रः ) परमैश्षय्येयुक्त ईश्वर
( ना ) इमारे किये ( स्वस्ति ) कल्याय फो ( द्धातु ) स्थापन फरे, ओर
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