भूमिकाप्रकाश | Bhumikaprakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'<*»७ नग्ननिविदन/ कक आज -<><()०४१०८)२८२००> 'संम्बत्‌ १८७७ बि०: में:आगरानिदासीः प॑० घनश्याप्जीने:श्रीम्तहया- - नन्दुः सरेंस्वतीकी रची हुई 'ऋग्वेदादि-माष्यम्तमिकापर / “एक समालोचना- त्मक अन्थ लिखा था ।'जिप्तका नाम “सामिकामास ? “अथवा: दूसरा नाम 5 भूमिकाधिक्वारापरपर्य्याय ? है वाच्रकवृन्द्‌: पुस्तकक्े - नापसेही . समझ ' संकते हैं कि उसके' अन्दर' किस प्रकारके भाव अ्डित्त किये गये 'होंगे 'उसेमें ऋषिदयानन्दपर ऐसे अनुचित आक्षेप किये हं...क्नि, जसे आजतक किसीने नहीं किये | पुस्तकके साग्रन्त अवलोकनसे प्रत्येक, विचारशील ''पुरुष' सरलतासे इस परिणामपर पंहुचेगा कि यह * पुस्तक--एक लेखककी कृति 'नहीं है | इसमें किंतनेद्दी लेखंकोंका हाथ है । जिसके लिये उसकी ' छेब्बशेठी तथा विविध 'प्रकारका परदेविन्यास' ही प्रमाण है । मिससम्रय यह “ पुस्तक निक्रढ्ी थी उप्तसमय ' इसके ऊपर अच्छी खाती. चर्चा समाचारपन्रोंमें चली थी । जहांतक-मुझे स्मरण हे इस .विषयमें' दो- एक लेख मेरे भी छपे थे।तथा अन्य, कंतिपय विद्वांनोंनेनी अपनी, लेखनी उठाई थी किन्तु एसी विंधेडी पुश्तकका जिम्तसे -साधारण जनताप्रें, बहुत कुछ भूठत फृहमी फेलजाना. सम्भव है लिखित पुम्तकद्गवाराही- उत्तर: दिया “जानी चाहिये ऐसी कितनेही *महानुभावोंकी 'सम्मति, हुई ॥ क्योंकि:-वकि 5 “उक्त पुस्तकके संस्कृतमें होनेके- कारण-कई आर्य, महानुभाव.इस, . सन्द्रेहमें * निमग्न होरहे थे क्या महर्षिं- दुयानन्दः सरस्वतीजी ;-संस्कृतमें.. इतनी. गल- 'तियां' कर गये हैं. आश्वर्यकी बात हैः॥ इतलेसेही: आप: अनुमान क्र: सुकते हैं कि इसका “कितना भयड्भर परिणाम्त होता ॥औरःसमातनी 1परण्डितोंके हछिये यंह कितना हर्षका कारण हो.-सकता था 1 :गुरुइन्दावनके- उत्सुवपर “अमान पुजनीय नारायण स्वेमीजीने- विशेष रीतिसे कहा कि-इस् पुस्तकका




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