ओंकार जप विधि | Aumkar Jap Vidhi

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Aumkar Jap Vidhi by शिवदत्त शर्मा - Shivdutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओऑंकॉर-जंप-विधि: | १९ जप करनले की इच्छा अपने आप उत्पन्न हो जाय । ऐंसा ही स्थान जप करने के लिये उपयुक्त समझना चाहिये । भोजन। | जप में वैठक का काम है | वेठक के जितने काम हैं सथ भन्दाग्नि रोग उत्पन्न फरने वाले हैँ । सन्दाग्नि उन महारोगों में से है जो प्रायः सृत्युके पू् होते हैं, यह उपनिषद्‌ में लिखा है। इस लिये ५-६ घंटे बैठकर जप करने वालों को भोजन का नियम अवश्य रखना चाहिये। भोजन कैसा करना-कितना करना-कब करना-इन बातों का जिसको ठीक ठीक ज्ञान होता है-मन्दाग्नि क्या कोई भी रोग उसके पास कभी नहीं फटकने पाते । भोजन के सम्बन्ध में श्रधिक ध्यान देने योग्य बात महपि मनुजी बतलाते हैं;--- अनारोग्य मनायुष्य मखर्य चातिभोजनम्‌ । अपुण्य लोक विद्विष्ट' तस्मात्तत्‌ परिवजयेत्‌॥ अधिक खाना आरोग्य ( तन्दुरुस्ती ) का नाश करता है- उम्र को घटाता है-हुखों को उत्पन्न करता है-विचारों को भ्रष्ट कर देता है और लोक में भी चुराई होती है । इस लिये सबसे पहिली बात यह है कि अधिक भोजन कभी नहीं फरना चाहिये। . , आजकल ग्रायः सभी लोग इस कुटेव के शिकार हो रहे हैं ।. इसी से सौ में एम भी मनुष्य पूर्ण निरोगी रृष्टि नहीं पड़ता । जप करने वाला हो वा बिना जप करने वाला, भोजन सदा दलका ताज़ा और फमती खाना चाहिये ।




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