ओंकार जप विधि | Aumkar Jap Vidhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ओऑंकॉर-जंप-विधि: | १९
जप करनले की इच्छा अपने आप उत्पन्न हो जाय । ऐंसा ही स्थान
जप करने के लिये उपयुक्त समझना चाहिये ।
भोजन। |
जप में वैठक का काम है | वेठक के जितने काम हैं सथ
भन्दाग्नि रोग उत्पन्न फरने वाले हैँ । सन्दाग्नि उन महारोगों में
से है जो प्रायः सृत्युके पू् होते हैं, यह उपनिषद् में लिखा है।
इस लिये ५-६ घंटे बैठकर जप करने वालों को भोजन का नियम
अवश्य रखना चाहिये। भोजन कैसा करना-कितना करना-कब
करना-इन बातों का जिसको ठीक ठीक ज्ञान होता है-मन्दाग्नि
क्या कोई भी रोग उसके पास कभी नहीं फटकने पाते । भोजन
के सम्बन्ध में श्रधिक ध्यान देने योग्य बात महपि मनुजी
बतलाते हैं;---
अनारोग्य मनायुष्य मखर्य चातिभोजनम् ।
अपुण्य लोक विद्विष्ट' तस्मात्तत् परिवजयेत्॥
अधिक खाना आरोग्य ( तन्दुरुस्ती ) का नाश करता है-
उम्र को घटाता है-हुखों को उत्पन्न करता है-विचारों को भ्रष्ट कर
देता है और लोक में भी चुराई होती है । इस लिये सबसे पहिली
बात यह है कि अधिक भोजन कभी नहीं फरना चाहिये। . ,
आजकल ग्रायः सभी लोग इस कुटेव के शिकार हो रहे हैं ।.
इसी से सौ में एम भी मनुष्य पूर्ण निरोगी रृष्टि नहीं पड़ता ।
जप करने वाला हो वा बिना जप करने वाला, भोजन सदा
दलका ताज़ा और फमती खाना चाहिये ।
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