द्विरगमं एत्शोधनं दत्तकुमुहूर्त व्यवास्तथा | Dviragaman Eshtshodhan Dattakmuhoort Vyavastha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
36
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एप्ट झोधन उ्यवस्था । ३३
गर्भ चन्द्रसमं जन्मतममानं तेथर्वाहि ॥४॥ इति हृषट
शोधन व्यवस्था ।
ग़थ दत्तक सुहते व्यवस्था ।
तत्न आपुत्रस्य गतिनारिति इति सत्र प्रसिद्धलाव पूत्र
रहितःभमृतप॒त्रोवा “झपुओ यृत इत्नोवा ध्यादि” शोनकोक्तिन
पुत्र प्रतिग्रह कुयाँत ग्रपत्नणत्र कतेव्यः एन्र प्रतिनिधि! सदा
पिग्टोदकक्रियाहतोः यस्मात्तसमागयलतः। इथुक्तेः । यद्यपि
श॒ज्तनि अयोदशविधाः पुत्रा उक्तःः तथापि कल्ो “ दतौरसे
तरेपान्तु पुश्नतलित परिगहः” इति शोनकोक्तेन दतकोरसमिन्ना
. नां पृत्रले ने निपेधात् अरसामावे दत्तको शृहीतव्यइति प्रा
' चीनानां सिद्धान्तः सोए तयानगोत्रश्नेन्युस्यः समान गोत्र
जामभावे पालये दम्य गोत्रजय् ? इल्ुक्ेः । तत्र परगोत्रोवा
पिमागिनेयों दोहित्रों वा द्िज्ञानां न दत्तको भवितुमधति
शूद्राण+तु भवाति दाहित्रों भागनियोवा शुद्रार्णा विद्ेतः
सुतः” इतिस्मरणात् । पिण्डोदकक्रिया हेतीरट्ुक्ते! वतमाने
ओर्सपुत्रे तस्य पातित्यादि सैभावनायां पिरवदानाथापि
कारगहित्येन पुकंषः पुत्रप्रति निर्विकुर्यात इति शांत सिद्धा
न्तः तथा क्रीदास्सी न साोमिवितुमह ते ततत्रो वा नपिण्ड
दानायपिहाराति। यथा
क्रसक्रीतातु य; नारी नहापत्यमिधीयते |
ने सा देवे न ता पिश्ये दास्तां कवयो बिहुः ॥श॥।
आनिन्दितेः खी वितहि! अनिन््या मेवति प्रजा ॥
निन्दिर्तेनिन्दिता नणां तस्मात्रियां विवर्जयेत् ॥२॥
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