संस्कृत शिक्षक भाग 1 | Sanskrit Shikshak Bhag 1

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Sanskrit Shikshak Bhag 1 by देवदत्त त्रिपाठी - Devdatt Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओ३प ग्रन्थकार का निवेदन शेश्वरी संस्क्रतावाणी सर्व-कमं-प्रसाधिनी । सुबोधिनीच शाखराणा जिहाजाडय-विनाशिनी अधूना जाचोन घटना श्वस्‌ पुराचोन साहित्य के अन्वेषक एवम्‌ आय( हिन्द ) समुदाय की इच्छा सस्कृतभाषाज्ञान को शोर विशेष दुष्ट होतो है। क्यों कि यह निविवादतया सवमान्य है कि पराकाल में समस्त महोमणडल को राष्ट्रलाषा एकमात्र संस्कृत भाषा हो थी। श्रतः तत्कालीन विट्वन्मण्डल ने इस संस्कृत भाषा को न्याय योग,सोॉख्य,वेदान्त,दतिहास, ज्योतिष, वेद्यक, नीति, विज्ञानादि विविध विषयों से समलकूत सर्वोगयुन्दर बना डाला था; साहित्य के किसी भी अंग में फिसो प्रकार को चटि न रक्‍णी थी । कोदे भी साहित्य का ऐसा विषय न था कि जिस पर संस्कृतभाषा के विद्वानों ने बहुविध भाव- मय श्रेष्ठतम ग्रन्थों को रचना न को हो । शअतर्व प्राचीन चटनाओं के झन्वेषणाय एवस्‌ पराकालोन विशेषताओं के बोधाय संस्कतभाषा के ज्ञान को शत्यावश्यकता है। इसके झतिरिक्त भारतवर्षान्तगत जितने शव, शाक्त, वष्णव, गाणपत्य शादि शादि. शिखाधारी सम्प्रदाय वा पन्‍य हैं उन सब के धमत- ग्रन्थ संस्कृतभाषा में हो हैँ । क्तएव उन २ मत्येक




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