गीतोपदेश | Geetopadesh

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Geetopadesh  by अनिल वरण राय - Anil Varan Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रेरे ) मनुष्य उच्चतम सिद्धि प्राप्त कर सकता है और उसके लिए ल्लाग वा सयाम की कोई आवश्यकता नशों है- कर्म शैत्र हि सासिद्धिधास्थिता जनकादयः ३| २० भीतर निश्चल शान्ति और बाहर सक्रियता गीता का प्रस्ताव है। अचल अटल शान्ति की भित्ति पर बृहत्तम कम करना, मन में परम शान्ति रखकर संसार के समस्त प्रयोज- नीय कम को सर्वाज्ञ छुन्दर रूप से सम्पन्न करना--यहीं गीता की मर्म कथा है! भारत में बौद्ध पर की प्रबल बाढ़ के सामने गीता की यह कल्याणकारी शिक्षा ठहर न सकी और बाद में आचाये शहुर ने जब तीव्र भाव से मायावाद और संन्यास का प्रचार किया तो वह एकदम नष्ठ ही हो गयी। गीता की शिक्षा के अनुसार जीवन गठन कर श्रपनें मानवत्व की ओर अग्रसर होने का युग तब नहीं आया था | गीता का जो साधम्य आदरी है अर्णत्‌ भगवान्‌ के भातर को प्राप्त करना, इस की पुनरावृत्ति तो ईसा मसीह की रहत्यम्य वक्ति में हुई है, “86 एलाहिट, ३७ एप किला 1 लए) 5७ एलहिटए जैसे परम पिता पूणे हैं वैसे ही मनुष्य को भी पूर्ण होना चाहिए ! नीट्शे, बगेसां, एलगजेग्डर आदि आधुनिक मनीषियों की शिक्षामें हम को इसी आदर्श का क्षीण आभास मिलता है। किन्तु गीता की इस शिक्षा का यह मम पृर्णतम विकसित हुआ श्री अरविन्द के योग में । मनुष्य किस ग्रकार भगवान के प्रति




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