धर्म शिक्षावली भाग - 3 | Dharm Shikshavali Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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परघन व ता# पर न छमाऊ ,सतोपामुत पिया करू ॥रे॥
00 अदकार का ,माव् तू रक्खु#नि्दी किसी पर क्रोध करू
देख दूसमें को पढ़ती को कमी न ईपोमाव धरू ।
रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य ब्यय॒द्दार करू,
बने जहा तक इस जीएन मं, औरों का उपकार कर ॥8॥
मैत़्ीमाय जगत में मेस, सर जीवों पर नित्य रहें,
दीन दुखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा श्रोत बहे।
दुर्जन क्रर छुमार्ग रतों पर, चोम नहीं मुझको आबे,
माम्यभाव रख मैं उनपर, ऐसी परिणित हो जावे॥५॥
गुणीजनों को देख हृदय म, मेरे श्रम उम्ड श्रावे,
ग्रने जद्दा सके उनकी सेवा, करफे यह मन सुख पावे।
होऊ नहीं कृतघ्न कमी मैं, द्रोइ न मेरे उर आवे,
घुणअहण को माष रहे नित, दृष्टि न दोपों पर जावे ॥६8॥
कोई घुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आये या जावे,
लाज़ी वर्षों तक ज्ञीऊ या, मृत्यु आज दो आजाबे।
अथवा फोई कसा द्वी भय, या लालच देने आये,
तोभी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न पद ढिगने पावे ॥७॥
होकर सुख में मग्न न फूले, दुख में कमी न पबरवे,
पर्वत नदी-स्मशान भयानक, अटवी से नहीं भय खाबे।
रहे झड़ोल अकृम्प निरन्तर, यह मन इतर बन जाथे,
क बालिकायें 'परतर? का पाठ पदें।
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