आत्म - मन्थन | Aatm - Manthan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुनि श्री चम्पक सागर जी महाराज - Muni Shri Champak Sagar Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ड अर नम
प्रार्थना
धदन हो प्रदत दा विश्व - पिभूतिकों बदन हो - (चाल)
पदेला घदन देश गुरुको दुसरा घद॒न मात्र पिताका
विसगा घदन विद्यागुरुकां, चीथा धदन शुधग्राद्िवों थ-१
पंचम चंदन अधिक गुणोक, छट्टा धदन समगरणीया
सातया धदून सथ ज्ीयाँदी आठवा धदन ज्ञामभूमिकाों घर +२
चपक्सागर क्ददे धदन करता गुण खज्ञाना अतर भरता
दु खोसे इम पभी न डरत धेय सदा हम मनम धरत थ -३
आत्मा भावना
भय भय भज्नन अतरयामी, करुणा रसका सागर तू
नाथ निरजन सक्ट भजन, तरे चरणा आया मैं
अज्ञान अंधेरा दूर करनझो जमे सुरजक्ष एक दी तू
तेरे घिता मन कि नठदरता स्वीकार अर्जा मरो जिभु -१
मई दारणागत परमार्थ तु विशेष विशेष मैं क्या कह
क्सि नाम से कस ुप से ध्याउ ठुझ्ते मैं प्रइन कर
गम पड़ेगा ज्ञो “ में अतर्यामी मरा तृ
त्तेरे से न अत्रा बात मै. सत्य पुर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...