पर्यन्त आराधना तथा नवपद आराधना विधि | Paryant Aaradhana Tatha Navapad Aaradhana Vidhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७)
मोकरबष्ली । तेह तणी किये आदइयतना, शानमाके ने खसामतीरें
॥ ३ ॥ प्रा० । श्ञा० । श्यादिफ वपरितपणाथी शाव विद्धध्यु जेद |
आमय परमय चरीय सगोमय मिच्छामि दुकड तदरे॥ ४1 ग्रा० ।
छ० | समस्तिस्यो शुद्ध जाणी, ए जाइणी | निनवचने शा ने
विफ्रीज 1विगम्ग्मत अभिशाप । साधु तणी निंदा परिहरजो फल
सलेंद्द म रापरे ॥ ९ ॥ प्रा० । शा० । सूड़पणु छडे परशसला ग़ुणयतने
आदरग्यि । सामि घर्मकरी थीरता, सनिम्रभायता परियेरे ॥६॥॥
श्रा० । झ्ा० 1 सध् चैंत्य धरासाद सणेज, क्यणयाद मतत्सां । हृच्य
देव को के पिण साइयु, पिगसता उनस्योरे ॥ ७ ॥ आ० ) स॒० ।
इत्याटि फरयिपरीत पणायी समस्त सडयुचंद ।आमय० । मिच्छा० 1
श्रा० । चारितल्यो बिच आणी । प् आकणी ॥ पांच समिति नौत
गुस्ति पराधी आठ ध्रवचन माय, साधु तण धर्म प्रमादे अशुझ्ध
चचन मन कायरे ॥ ९ ॥ धा० । चा० ॥ भ्रावकन घमर सामायक पो
सदमा मनबाली, ज॑ ज़यणा पूयर् ए आठ प्रययन साय ने पालिरे
॥ १० ॥ प्ा० चा० ॥ इत्यादिश विपदित पणाथी चारिन डोत्यु जद ।
आमध० वि/छा०॥ ११ ॥ यारे भेदे तप नयि फीध छते यांगे निम्र
श्ते। धर्म मत धयन फत्या चरज़ नत्रि फोर यियो भगसे रे ॥ १०॥
प्रा० चा० | तप घीरज्ञ भायार एुणी परे, विजिध पिगष्या जेंह।
आमच० मिच्छा०॥ १३॥ ध्रा० चा० । घारि पिशेषे चारित्ष करा
अतिचार आलाइंय पीर जिणे सर दयण सुणीने पाए मर से
चोडये रे ॥ १४ ॥
ढारट धीजी पामी सुगुद पसाय एट्शी
पृथ्वी पाणी नेड, बायु धनस्पति ए पाये थापर फद्याए, बरी
करसण आरम जे प्र सोडिया । कुचा तलाय सणायियाप ॥७॥ घर
यारम जनेक दाका आयरा, मेडी मार चणावियाए। छिपण धूपण
कान, पाणिपर । पृथ्वी काय पिराधियाए ॥ ५॥ घोत्रण नादण पाणी
जीतण अपृयाय, छोती घाती करी दूहब्याए। मारीगर छुमार,
छा सोपनगंत भाउमुँज रिहा रागराण ॥३॥ तापण शीक्षण
>> सह
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