पर्यन्त आराधना तथा नवपद आराधना विधि | Paryant Aaradhana Tatha Navapad Aaradhana Vidhi

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Paryant Aaradhana Tatha Navapad Aaradhana Vidhi  by प्रतापमुनि - Pratapamuni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) मोकरबष्ली । तेह तणी किये आदइयतना, शानमाके ने खसामतीरें ॥ ३ ॥ प्रा० । श्ञा० । श्यादिफ वपरितपणाथी शाव विद्धध्यु जेद | आमय परमय चरीय सगोमय मिच्छामि दुकड तदरे॥ ४1 ग्रा० । छ० | समस्तिस्यो शुद्ध जाणी, ए जाइणी | निनवचने शा ने विफ्रीज 1विगम्ग्मत अभिशाप । साधु तणी निंदा परिहरजो फल सलेंद्द म रापरे ॥ ९ ॥ प्रा० । शा० । सूड़पणु छडे परशसला ग़ुणयतने आदरग्यि । सामि घर्मकरी थीरता, सनिम्रभायता परियेरे ॥६॥॥ श्रा० । झ्ा० 1 सध् चैंत्य धरासाद सणेज, क्यणयाद मतत्सां । हृच्य देव को के पिण साइयु, पिगसता उनस्योरे ॥ ७ ॥ आ० ) स॒० । इत्याटि फरयिपरीत पणायी समस्त सडयुचंद ।आमय० । मिच्छा० 1 श्रा० । चारितल्यो बिच आणी । प्‌ आकणी ॥ पांच समिति नौत गुस्ति पराधी आठ ध्रवचन माय, साधु तण धर्म प्रमादे अशुझ्ध चचन मन कायरे ॥ ९ ॥ धा० । चा० ॥ भ्रावकन घमर सामायक पो सदमा मनबाली, ज॑ ज़यणा पूयर् ए आठ प्रययन साय ने पालिरे ॥ १० ॥ प्ा० चा० ॥ इत्यादिश विपदित पणाथी चारिन डोत्यु जद । आमध० वि/छा०॥ ११ ॥ यारे भेदे तप नयि फीध छते यांगे निम्र श्ते। धर्म मत धयन फत्या चरज़ नत्रि फोर यियो भगसे रे ॥ १०॥ प्रा० चा० | तप घीरज्ञ भायार एुणी परे, विजिध पिगष्या जेंह। आमच० मिच्छा०॥ १३॥ ध्रा० चा० । घारि पिशेषे चारित्ष करा अतिचार आलाइंय पीर जिणे सर दयण सुणीने पाए मर से चोडये रे ॥ १४ ॥ ढारट धीजी पामी सुगुद पसाय एट्शी पृथ्वी पाणी नेड, बायु धनस्पति ए पाये थापर फद्याए, बरी करसण आरम जे प्र सोडिया । कुचा तलाय सणायियाप ॥७॥ घर यारम जनेक दाका आयरा, मेडी मार चणावियाए। छिपण धूपण कान, पाणिपर । पृथ्वी काय पिराधियाए ॥ ५॥ घोत्रण नादण पाणी जीतण अपृयाय, छोती घाती करी दूहब्याए। मारीगर छुमार, छा सोपनगंत भाउमुँज रिहा रागराण ॥३॥ तापण शीक्षण >> सह




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