1962 युद्ध जो लड़ा नहीं गया | 1962 Yuddh Jo Lada Nahin Gaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रशिक्षित और उसी तरह से ढसे के ० सौ० थाई जौ०> अब भौ अपनी शाही दुनिया
में रहे हैं, जैताडि उनके विचारों में प्रकट होगा है। यहा तक कि इस सरह के
विचार किसी अताती अकसर ने भी व्यक्त न किए होते। मुझे भूतवू्द आई० एन«
ए० अफसरों और दूसरे उच्चस्तरीय अधिकारियों से वात करने का मौझा मिला
है और वे सभी इस बात को स्वीकार करते हैं हि आई० एन० ए० के अधिकारियों
कर कषन्य कम चारियों को स्वतन्न सारत वी सेना में सेवा वा अवसर न देकर,
उन्द्दीके साय नही, बल्कि देश वें. साथ अन्याय क्िप्रा है। इन अधिकारियों और
जवानों ने पूरी निष्ठा के साथ आजादी के लिए राजनैतिक लड़ाई के समांवर
लड़ाई लड़ी थी । यह काफी दिलचम्प है कि जिन सोगों ने अंग्रेडों के जमाने में
ज्ातिकारी गतिविधियों के कारश जैल-यात्रा की थी, और अंग्रेजों के खिलाफ छिप-
कर या खुलेआम संघर्ष किया था, उन्होंने तो नेता बतक़र सरकार बना डाली, पर
भारतीय सेना के वे अफसर और जवान, जिनवेः सामने युद्धबंदी दनने के सिवा
और कोई चारा न था, और जो स्वदेश लौटकर, दितानी मेना वी नौकरी छोड़-
कर स्वतंत्नता संग्राम में शामित्र हो गए थे, उन्हें स्वतत भारत की सेवा में कोई
स्थान नहीं मिला | यह वे० सी० बाई० ओ० अफसरों के कठोर रवैये के कारण
हुआ जो अरनी परदोललति के लिए झ्थ्रादा विवित नडर आते थे । ऐसा से तत्का-
लीन स्यज्न सेताध्यक्ष जनरल ओबेनलेफ ने प्रशानमत्री नेहरू को दिया था जिसे
डॉ० के० कै० योप ने अपनी पुस्तक 'द इंडियन नेशनल आर्मो' में प्रस्तुत किया है ।
“द इडियत नेशनल आर्मी की भूमिया से प्रमुख इतिहास डॉ० आर० मी ०
मजुमदार ने इसे भारतीय राष्ट्रीय सेना का प्रथम विस्तृत विवरण बताते हुए लिखा
है कि “डॉ० घोष द्वारा इस मुय वात पर जोर दिया जाता कि यदि आई० एन०
ए० ने होता तो ब्रिटेन भारत को 1947 में आडदी नहीं देता, सुझे काफी सही
निष्फय लगा, जैसाकि मैंने अपनी झिलाबों में लिखा है” डॉ० घोष ने काफी
प्रभावी दंग से समझाया है कि केसे आई० एन० ए० दे: मुकदमे से देश में उत्पन्न
आतिकारी स्थितियों के फलस्वरूप जल सेना की बगावत को असनी बल मिला । यहा
तक कि महात्मा गाधी ने भी हरिजन में लिया था, “आई० एन० ए० के सम्मोहन
ने हमपर भी वाफी अमर डाला है 17
आई० एन० ए० अफसरों का इतना प्रभाव था कि डॉ० बी० पट्टाभि
सीतारमस्या ने अपनी पुस्तक 'द्विस्टरी आफ इंडियन नेशनल कात्रेस' में लिखा है,“एक
क्षण के लिए ती आई ०एन ०ए० अफसरों ने राष्ट्रीय नेताओ के नाम को भी निष्पम
कर दिया। सगा, जैसे आई० एन० ए० ने भारतीय राष्ट्रीय काप्रेस को ग्रहणग्रस्त
कर दिया हो और विदेश में अजित युद्ध तया हिंसक कार वादयो के लाभो मे स्वदेश
में हुई अधविसा की विजयो को घुधला बना दिया हो ।” यह आई० एनस० ए० द्वारा
प्रेरित जब सेना का गदर, बदता असतोष और हडतानें, तथा स्थल और वायुसेना
भारतीय स्थल सेना वा विकास / 13
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