जाति व्यवस्था | Jati Vyavastha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भप्रध्याय हे
जाति-व्यवस्था का उद्गुमव और विकास
हिंदू जाति-व्यवस्या समाज म॑ प्रचलित दन्तक्याआ पर आधारित है।
चर इन दतकयाओं के भ्रणेता कौन थे और उहोंने इन कथाझ्रो वी रचना
बयोकर वी ? दुसरे शब्दा मे, हम जानता चाहते हैं कि जाति-व्यवस्था का
प्रारम्भ भौर विकास विस प्रकार हभ्ा। जसा कि काक्स ने बताया है, जब हम
पूछत हैं कि भारत में जाति-व्यवस्था कैसे शुरू हुई तो बस्तुत' हम जानना
चाहत हैं कि हिटू समाज की स्थापना क्सि प्रकार हुई । * परतु इस व्यवस्था
थी उत्पत्ति के सामाजिक कारण दूढने की चेप्टा व्यय है. कोई भी सामाजिक
व्यवस्था प्रादुभूत्त नही होती उसका विवास ही होता है ।* झत जाति-्व्यवस्था
के उदुभव या विकास को समभने के लिए हम इतिहास के अनेक पेचोदा और
लम्बे रास्ता से गुजरना होगा ।
जाति के उद्भव को लेकर कितने हो सिद्धान्त प्रचलित हैं। इनम से
मांटे तौर पर पाँच सिद्धान्त सवाधिव महत्वपूण हैं । उनमे भी तो सबसे पहले
थरम्परागत सिद्धान्त उल्लेखनीय है, जो मनु-सहिता मे मिलता है। तत्पश्चातु
आता है भाजीविका-सम्ब थी सिद्धात, जिसके सबसे प्रसिद्ध प्रवतव हैं नेस्फील्ड
तत्पश्चांत् झाती हैं इवेट्सन की जनजातीय और घामिक व्याल्या, सेनाट वी
परिवार शोर समुदायपरक व्याख्या, रिजले की प्रजाति श्रोर अनुलोम विवाह
परक व्याख्या ।३ इन सिद्धान्तो को हम दो प्रशस्त श्रेणियों मं वाट सकते हैं
(१) बसे सिद्धांत जो सास्क्ृतिक व्याख्या पर आधारित हैं (२) वे सिद्धाल
जा प्रजातिपरक व्यास्या पर आधारित हैं ।
प्रो० सोरोक्नि का विचार है कि “प्रजाति, चयन भौर वद्ागत्ि-सम्बधी
यातें लोगा को बहुत दिनासे चात थी भारत के धामिक ग्रथो मं यह
सरिद्धात रूप से प्रतिपादित है कि विभिन्न जातियाँ ब्रह्मा वी देह वे विभिन ब्रगा
से निकली हैं श्रौर उनमे मोलिक भन्तर है। फ्लताः रक्त का सम्मिश्रण या
भतर्नातीय विवाह या प्रजातिया के बीच क्सी प्रकार का सम्पक सबसे वडा
अ्रपराघ माना जाता है । प्रत्येक व्यक्ति या सामाजिक भाव या दजा उसके
माता पिता के रक्त के भाषार पर निर्धारित होता है प्राचीन समाज मे लोगा
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