बृहन्निघण्टुरत्नाकरे भाग - 4 | Brihannighanturatnakare Bhag - 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
379
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पं
शय इस ग्ंथका उदार आश्रय छेकर स्व प्राणीमात्रके रोग नएह-
करके धर्म आदिक चतुर्विध पुरुपार्थकी प्िद्धकर अपने जन्मका
साथेक करेंगे
इस वृहत् ग्रन्थके आठ भाग हैं तिनमें १, ९, ३, ७, ५, ६) ये
छःभाग मथुरानिवासि विज्ञ पंडित-दत्तरामजी द्वारा निर्माण हुये हैं.
ओर ७, ८ इन दोनों भागों को परमोदारचरित श्रीधन्वन्तरि शास्त्र
पारावार् पारीण मुरादाबाद निवासि श्रीछाल शालिय्रामजीने
बनाया है. जिनमें संपर्ण ओपधियोंके अनेक देश देशांतर (भाषा)
प्रसिद्ध नाम और गुणदोपोंका सविस्तर वर्णनके अतिरिक्त इसमें
संपूर्ण ओपपियोंके विज्ञानार्थ चित्रभीदिये हैं. मिसका नाम “शालि-
आमनिषण्टुभूषण ” रक््खांहे ऐसे १ से छेकर ८ भागोंगें यह “बूह-
ब्रिपण्ट्रत्नाकर' ग्रन्थ सवा सुन्दर परिपूर्ण हुआहे हमारी हृढ
जाशा है कि इन आठों भागों सहित “बृहप्निपण्टुरत्नाकर' ग्रेथकी
संग्रह करनेसे फिर आयुर्वेदके कोई विपय जाननेकी आवश्यकता
न रहेगी, इसलिये संसारको बडाही उपकारक जान मेंने निज
'अवेडटेधर” छापाखानेमें सुद्वितकर प्रसिद्ध कियाहे.
अंतमें सवे पतन महाशयोंकी निवेदन है ओर आशाकरतेंहें
कि; इस संपूर्ण मंधकी संग्रह करके उपरोक्त दोनों विद्वानोंके परि-
अ्मसे संस्कृत सह भाषाका अपार आनंद अनुभव कर जन्म पर्यत्त
इस पुस्तक की पूर्ण शक्तिसे निरोग रहेंगे ओर हमारे हृदयोत्साह-
'को बढावेंगे ॥
आपका कृपाशिलापी-
खेमराज श्रीकृष्णाास,
“अंवेड्टेथर” मद्रणाल्याष्यक्ष-संवई. *
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