स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य | Skand Gupt Vikramadity
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रवम ओक
मादगुप्ठ--यदि यह बिश्द इन्द्रमाद ही है, ठं उस इन्द्र
जाली की अनन्त इच्छुः को पूर्स करने का साप्न--ग६ मपुर मोद
'जिरजौपौ शो और ऋमिकापा से मदकने बाले मूज़े इृदय को आदर
पिले |
कुमारवास --मित्र | ठु्ारी कोमक कश्सता, बाशी की बीशा
में मनछर उत्तर करेगी । ठुम सचेष्ट बनो, प्रतिमाशाक्ती शो | हु्दारा
महदिष्प बड़ा उम्न्बक है।
मादशुप्त--उछद्टौ खिन्हा नहीं । दैन्य डीबन के प्रथशट आठप
में मुन्दर स्नेह मेरी छाया बने ! मुखसा हुआ जौवन पन््य दो जारगा।
कुमारदास-मित्र | इन थोड़े दिनों झा परिचय मुक्त
भ्राशैबन स्मरण रहेगा | अद हो में सिएक्त आठा हैँ--देश को
पुगार है | इसकिए में स्वप्नों का देश 'मम्पन्मास्तः छोड़ता हैं।
कमिबर | इस झौशसरिखय बुमार घाठुसेन दो भूकना मत--
झमी झाना |
आदगुप्त--रुप्राट् कुमाप्युप्ठ के सश्बर, बिनोदशील कुमार
दास | हुत छया इमार धातुसेन हो
कुमारशस--हँ प्रिद्र, लक का युद्ध । शमाश एक मित्र,
एक बाहान्सएचए, प्रस्पातड्रीर्ति, मशरोधि-विष्ठार का भ्रमण है।
डस झौर गुप्त-ताप्रास्प का बेमश देणन पस्पटढ़ के रुप में सारठ
बक्ता आया था गौतम के प३ रज से पवित्र सृमि को छूइ देफा
चोर देफा दर्प से ठदत गुप्त-शाप्राप्य के हौसर पर का द्स्पे।
आर्य्य अम्पुत्यान का पट स्परकौप युण है! मित्र, परिषठन
उर्रिवद है।
माठंगुप्त-हघ्नाद दमास्युप्त के खाद्घाय में परिषषन )
घणुसेन--ए्क सुबढ़ | इस गठिशौल जगत में परिदर्दन पर
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