स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य | Skand Gupt Vikramadity

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Skand Gupt Vikramadity  by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवम ओक मादगुप्ठ--यदि यह बिश्द इन्द्रमाद ही है, ठं उस इन्द्र जाली की अनन्त इच्छुः को पूर्स करने का साप्न--ग६ मपुर मोद 'जिरजौपौ शो और ऋमिकापा से मदकने बाले मूज़े इृदय को आदर पिले | कुमारवास --मित्र | ठु्ारी कोमक कश्सता, बाशी की बीशा में मनछर उत्तर करेगी । ठुम सचेष्ट बनो, प्रतिमाशाक्ती शो | हु्दारा महदिष्प बड़ा उम्न्बक है। मादशुप्त--उछद्टौ खिन्हा नहीं । दैन्य डीबन के प्रथशट आठप में मुन्दर स्नेह मेरी छाया बने ! मुखसा हुआ जौवन पन्‍्य दो जारगा। कुमारदास-मित्र | इन थोड़े दिनों झा परिचय मुक्त भ्राशैबन स्मरण रहेगा | अद हो में सिएक्त आठा हैँ--देश को पुगार है | इसकिए में स्वप्नों का देश 'मम्पन्मास्तः छोड़ता हैं। कमिबर | इस झौशसरिखय बुमार घाठुसेन दो भूकना मत-- झमी झाना | आदगुप्त--रुप्राट्‌ कुमाप्युप्ठ के सश्बर, बिनोदशील कुमार दास | हुत छया इमार धातुसेन हो कुमारशस--हँ प्रिद्र, लक का युद्ध । शमाश एक मित्र, एक बाहान्सएचए, प्रस्पातड्रीर्ति, मशरोधि-विष्ठार का भ्रमण है। डस झौर गुप्त-ताप्रास्प का बेमश देणन पस्पटढ़ के रुप में सारठ बक्ता आया था गौतम के प३ रज से पवित्र सृमि को छूइ देफा चोर देफा दर्प से ठदत गुप्त-शाप्राप्य के हौसर पर का द्स्पे। आर्य्य अम्पुत्यान का पट स्परकौप युण है! मित्र, परिषठन उर्रिवद है। माठंगुप्त-हघ्नाद दमास्युप्त के खाद्घाय में परिषषन ) घणुसेन--ए्क सुबढ़ | इस गठिशौल जगत में परिदर्दन पर




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