हिन्दी के कवि और काव्य बहग - 3 | Hindi Ke Kavi Aur Kavya Bhag - 3

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Hindi Ke Kavi Aur Kavya Bhag - 3  by श्री गणेशप्रसाद द्विवेदी - Shri Ganeshprasad Dwavedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २१ ) शेखपुर इत गाँव सुद्ावा । शेख निसार जनम तहेँ पावा॥ शेख. हथीबुल्लाह खुद्ाये । शेखपुर जिद आन बसाये॥ ञ्् भर >८ फिर आगे चल कर कवि कद्दता है कि सम्राट अकबर के समय में वे ( शेख इंबीबुल्लाह ) देदहली से अवध आये और बीस चप तक वहाँ रहे । इनके पुत्र शेख मुहम्मद हुए । इनके पुत्र का नाम गुलास मुहम्मद था और यही शेख विसार के पिता थे। फिर निसार ने अपने पू्वज शेख हृवीबुल्लाइ के प्रसिद्ध मौज्ञाना रूम का वंशज माना है। पातशाह झकबर सुलताना। तेहि के राज कर जगत बख़ाना॥। अवध देस सूव होय आए | चीस वरस तहेँ रहे सुद्दाए ॥ तेहि के शेख मुहम्मद वारा | रुूपबंत भू के शअ्रवतारा ॥ ता सुत शुल्लाम सुहम्मद नाऊँ। से हम पिता से ताकर गाऊँ॥ घंस मौलवी रूम के , शेख हयीबुल्ाद । जेहि के मसनदी जगत महेँ . अगस निराम अ्रवगाह ॥ ५ | >८ अपनी शिक्षा दीक्षा तथा प्रंथ रचना आंदि के संवध से भी कवि स्वयं पर्याप्त सामग्री दे देता है। अरबी, फोरसी, तुर्की, ओर सस्क्ृत आदि कई भाषाओं में कवि को गति थी और इन्होने साथ म्रथ रचे थे जिनमे तीन गद्य, एक दीवान, एक अलंकार प्रंथ तथा एक भाखा काव्य ( युसुफ-जुलेखा ) मुख्य थे । कवि की पत्तियों से यह व्यक्त होता है क्लि इनके पंथ फारसी, अरबो और सस्क्ृत में भां थे, पर इनका हमसें अभी तक पता नहीं क्ञग सका है। सात गरंथ अनूप सुहाए | हिंदी ओ पारसी सेहाए ॥ संस्कृत तुरकी मन भाएु | अरबी और फारसी सुदाए ॥ हर निकार के गेहूँ खाने | रस मनोज रस गीत बखाने ॥ ओऔ दिवान ससनवी साखा । कर दोइ नसर पारसी राखा॥ कवि का समय निसार कवि कहते हैं कि बुढोती में उन्होंने युसुफ जुलेखा लिखी | सात दिन में चह अंथ लिखा गया और उरा समय उनकी अचस्था ५७ सत्तावन वर्ष की थी। अंधरचना का समय १२०५ हिज्ारी दिया हुआ है। प्रतिलिपि मे सवत्‌ १८२७ पर हिसाब लगाने पर यद्द संवत्‌ १८४७ होता है। स्पष्ट है कि यहाँ लिपिकार ने भूल की है । फ़ारसी लिपि में 'सेताज्ीस” का 'सत्ताइस' पढ़ा जासा या लिखा जाना दोनों ही संभव है| जायसी के संबंध मे भी ठीक इसी तरह फी भूल हुई है जहँ। क्लि




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