पटुतार दीपिका -१ | Patutar Depika-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.72 MB
कुल पष्ठ :
409
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
ल्मणदासनी के सुनते दी मोणोन झमरदासजी 'ादि
दाइस सम्मदाय फे थायकों को दिलसुल यालूम हो गया
कि चचो करने की इनकी दिम्पत नहीं ययोंकि पनी शुद्धता
होदे तो सभा के सामने चनो करने को शथ्ादे परंतु सूल सदी
देसी श्रद्धा दै कि साधु की फासी काटने में पाप धर गायों
को दलते दाढ़े में से निकालने में पाप हैं नो एसी धद्धा वाले
सभा के सापने केसे धासके तो खेर जसी इनफी पालपाल
शद्धा झपने मन में समभते थे देसी दी दिदित हो गई तो
पद इनको नाइक उपादा संग परना ठीश नहीं ऐसा झपने
मन में हुए पर्दूस सम्प्रदाय के श्रादकों ने संतोप कर तेरेपंथी
श्रादकों को कहा फि खेर नम चचों नहीं करादो तो दुम्दारी
खशी पांतु झा के पत्र के ददल इमारा यह जो पत्र धापकों
दिया है इसका घरापको सुनासिय नुल वेसा उत्तर लिख भेजना
यह कदर इम सदे दाइस सम्मदाय की थ्रावक मंडली बहां
से चली श्ाई घोर पिच्छा पत्र भाने की राइ देखते रहे
परंतु पत्र तो शायि दी कहां से दयो कि चच। करने फी दिस्मत
नहीं तो पत्र कैसे भने दस इसी नरद से चाुर्मास्य का सपय
सीत गया परंतु न तो सात मरनों का उत्तर दिया झौर न
इमारे पत्र के बदले उनझा पत्र पीछा छाया नद हम दाईस
सम्पदाय के शावद तो इन नेरे पएंथियों का मत नसा था येसा
जानंत ही थे परंतु जोपपुर दे रहने दाल नन दर्शन के सिदाय
शन्प दर्शन दाले बहुत मध्परपों को भी दिदित होगया कि
इन वर पंथियों की यह थद्धा ६ घोर एस यह सच्चे ई ।
बस य६ चसथा जाधपूर श्र से घदिदिव ( दनी । नहीं
ही
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