चरक संहिता | Charak Sanhita Part -1

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Charak Sanhita Part -1 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ३ ) से प्रचारित किया, तो भी भश्निव्रेश द्वारा प्रचारत चरक की महती प्रतिष्ठा हुई | परम्परा से प्राप्त ग्रुरूपदेशों पर ऋषि आत्रेय पुनर्वसु के विशेष अवचन को सर्वन्न स्वीकार किया गया है । इसी शास्त्र का अ्रतिसंस्कार श्री महर्षि पतञ्नल्ति ने किया वे ही चरक नाम से विख्यात थे। इस में पत्चन॒दपुर के निवासी आचाय इढ्बल ने अन्य अनेक शास्त्रों से सारोद्वार करके कईं अध्यायों को जोड इस को पूर्णाह् किया । घरक-संहिता की विशेषता चरक-संहिता एक ऐसा आकर ग्रन्थ है जिसमें अनेक विशेषताएं हैं । सारा अन्थ इस प्रकार संकलित हुआ है जैसे किसी अत्यन्त निर्भ्रान्त मस्तिष्क से छव कर आया है। भाषपारीली इतनी रोचक है कि वैद्यक को शास्त्र होकर भी स्थान २ पर उच्च कोटि के साहित्य की छटा दीखती है । चरक-संहिता के विमानस्थान ( अ० « सू० ३ ) में शाखत्र के जितने ग्रुण लिखे हैं वे सत्र पूर्णाश में चरक-संहिता में घटते हैं। इस सर्वाड् पूर्ण शास्त्र की महिमा को सभी ने अनुभव किया है। इसी से यह शाखत सर्वसान्य जगन-भर में अद्वितीय है । चरक-संहिता पर भाष्य और टीकाएं चरकाचार्य को हुए अब से दो सहख्र वर्षो से अधिक समय हुआ है । आचाये इृद्वल जिन्होंने चरक की पूत्ति की है वे आज से १७०० चर्च पूरे हुए हैं. और चरकचतुरानन चक्रपाणि ईसा की ११ वीं शतादवदी के मध्य में हुए है । आप वंगदेश के सुविख्यात राजबैद्य थे । पालदंशी राजा नयनपाल के आप राजकीय पाणाचार्य थे । इनकी प्रसिद्ध टीका चरक- सास्पर्य-टीका' है जिसका दूसरा नाम भायुवेद्दीपिका है । ( २ ) श्रीशिवदटास की त्रिरचित चरक की तल्पय टीका है । (३ ) श्रीकृष्ण भिषक्‌ कृत श्रीकृष्णसाप्य है ।




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