जैनशिलालेख - संग्रह | Jain Shilalekh - Sangrah

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Jain Shilalekh - Sangrah  by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना... ट् और यतियोंके लिए कुछ दानका वर्णन हैं। पाँचवाँ लेख शाकम्भरीके चाहमान राजा सोमेश्वरके समयका सन्‌ ११७० का हैं। इसमे बिजोलिया- के पार््बनाथ मन्दिरके लिए पृथ्वीराज २' तथा सोमेश्वर-द्वारा दो गाँव दान दिये जानेका वर्णन हैं। इस राजवशके कोई ३० पीढियोका वर्णन इस लेखमें मिलता है। मुगल साम्राज्यके तीन लेख इस सगम्रहमें है (क्र० ४८१, ५०६, ५१२)। पहला लेख अकब्रके समयका सन्‌ १५७१ का है। इसमें महेइ्वरके आदिनाथ मन्दिरका जीर्णोद्धार मण्डलोई सुजानराय-द्वारा होने- का वर्णन हैं। शाहजहाँके राज्यका एक लेख (क्र० ५०६) सन्‌ १६२८ का हैं। इसमे भी एक जिनमन्दिरके जीर्णोद्धारका वर्णन हैं। तीसरा लेख सन्‌ १६६२ का -- औरगजेबके समयका हैं । इसमें राजा जयसिंहके मन्‍्त्री मोहनदास-द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन हैं (आ) दक्षिण भारतके राजवंश-- (आरा $) गग राजवंश--इस वंशके १३ लेख प्रस्तुत संग्रहमे है । इनमें पहला (क्र० २०) राजा अविनीतका एक दानपतन्न है जो छठी सदीके पूर्वार्धका हैं । इसमें यावनिक सघके जिनमन्दिरके लिए राजा-द्वारा कुछ भूमिके दानका वर्णन है । दूसरा लेख (क्र० २४) सातवी सदीके अन्तका शिवकुमार पृथ्वीकोगुणिवृद्धराजके समयका हैं। इसमे राजा तथा कुछ अन्य सज्जनो-द्वारा एक जिनमन्दिरके लिए भूमिदानका वर्णन हैं। तीसरे




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