महाभारत कालीन समाज | Mahabharat Kalin Samaj

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Mahabharat Kalin Samaj by सुखमय भट्टाचार्य - Sukhmay Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विवाह (क) पु ४ विवाह सल्कार और उसकी परविनता--विवाह स्त्री व पुरुष का एक विशेष सस्‍्कार है। यह वहुत ही पवित्र बेघन है। महाभारत के जाश्षम धरम एव अ्तिब्रताधघम की आलोचना मे इस विषय पर विस्तत रूप से प्रकाश डाला जायगा। याहस्थ्य घम वी समस्त सुख शाति व कततव्यनिष्ठा इसी पित्त वधन पर जाबारित है। विवाह फा प्रधान उद्देश्य पत्रोत्पत्ति--विवाह वा प्रधान उद्देश्य पितऋण का पश्शिोध करना है। सतानात्पत्ति द्वारा वह ऋण उतरता हू। पितरा का अविच्ठिय सत्ततिधारा का रक्षा बरव से ही वे प्रसप हावे ह। (चतुराभम अ्रवरण दिए | । गहसस्‍्थ के लिपि विवाह एक आवश्यक फत्तव्य--अ्रह्मचम पालन के बाद जो गृहस्थ हाना चाहता हा पत्नी ग्रहण करना उसके लिये जनिवाय है। जरत्वार के साथ उनके पिवगण का जा क्थापक्थन वणित है, उसम स्पषप्टत उत्तिसित्त है कि गहस्थ के टिये स्त्री ग्रहण एक आवश्यव कत्तव्य है नही तो पितगण नरबः जामी हात है।' चुत्रछ्ाभ फी प्लाध्यता--जगत म जितने भी पाथिव 'राभ् हैं उस समभे पुषत्मभ ही सम अधिक श्टाघनीय है। घमपता द्वारा पुवात्पात हाने से व यो अविच्छित सतति धारा रखित हाती है। एश्मात पुत्र के वियाह फी अपरिहायता---जों व्यक्तित अपन पिता वा एवा मात्र पुत्र हो, उसके लिये नप्ठिक ब्रह्मचय निपिद्ध है। पुतात्पत्ति $ तिमित उसे पन्नीग्रटण १रनी हा होगी। जरत्फपास्तत्पितमबाद मे यह वात बारबार कहा गई है हापरयुग से स्त्रो पुरुष के समोग से सन्तानोत्यलि--कहा यया है कि सत्मयुंग मे मनुष्य की मत्यु स्वच्छाधान थी। यम्र ता भय रिल्कुल नहा था। उस वार में १ भादि १३ याँ अ०1 रतिप्रत्फला नारी1 समा ५१११२, ४2० ३८1६७ उत्पाय पृुआाननणात्च इत्वा। उ० ३७३९ २ विवाहइरचव कुर्वोत पुत्रानुत्पाययेत च! पुथ्रकामी हि कौरव्य सवल्भाठ विचिप्यते ॥ अनू ६८३४ कुलवप्रतिष्ठों हि पितर पुश्रमबवन। आदि ७४॥९८ यथा जम हमपुत्रत्य। बन १९९४ ३ झाड़ि शक्ल भ। आडि ४ए च और ४६ ज अ० 1




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