रोशनी की तलाश | Roshani Ki Talash

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Roshani Ki Talash by श्री हर्ष - Shri Harsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रात-पहरेदार ४ अक्टूबर की रात धूम घूमकर लगा रहा था पहरा मिट्टी कौ कलापूर्ण देवी को चुरा न ले माताल अंधेरा ईश्वर भी खरीद-बिक्री की वस्तु बन गया है मूर्तियों की तस्करी लोग करते हे धर्म समझ । पंडाल में ऊंघते मुरकाये मलय बाबू को - तंग कर रहे थे - शारदीय मच्छर ऊंँघ-ऊँघ कर बोल रहे थे-- “गले में डोरी बांधे भूल रहा है अभी बोनस पर्व के आनन्द को चाट गई महंगाई” बच्चे नही जानते हैं इस सफ़ेद सच को खामोशी के भय से पीछे वाले हिस्से के कुत्तो क्यों भौकते है ? पोखर वाले पर्ंट में जमा है जुओ का अड्डा तर रही परछाई बेगम-गुलाम की नया वकील नशे में अनगंल बकता है पैसों को नचाता हुआ दो सीढ़ी चढ़ता है छड़खडाकर तीन सीढ़ी उतरता है। रोशनी की तसाश/(७




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