पूजा के फूल | Pooja ke Fool

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Pooja ke Fool by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा चरम ल्क्ष्य डे उद्देश्य या रक्ष्य ही नहीं है, मरनेके सभी सामान तैयार हैं। आर्य तो यही है कि इतनेपर भी हम मरते नहीं | हमारी ऐसी दा क्यों हो गयी ? हमने अपने तप-तेज और बीर्यको कैसे खो दिया ? हम इस पापके गहरे कीचड़में क्योंक्र फैस गये ! इन प्रश्नोंका समाधान करना बिल्कुल सहज बात नहीं है । पर्तु इसमें सन्देह नहीं कि हम केवल अपने ही कियेका फेल इस समय भोग रहे हैं । आज हमें भारतकी वह प्राचीन पवित्र और आदर्श जीवन-निर्वाहकी व्यवस्था अच्छी नहीं ढगती, क्योकि हम ख््य-भ्रष्ट हो चुके हैं। इस समय प्राधात्य शिक्षा, ज्ञान और विज्ञानने तथा उनकी वोद्य सम्पत्ति, भोगविलास और नित नयी जैशनने हमारे चित्तकों चश्चढ कर डाह्ा है, अपने घरकी चीजसे हमारा मन हट +०० ० दैट गया हैं, परन्तु पाश्चास्य शिक्षाके भी असझो भी असछी झम ग्रहण नहीं कर सकते । इस अवस्थामें हमारे उमय- भेष्ट होनेकी सम्भावना ही अधिक है । यदि इस समय हम इसके कोई उपाय नहीं करेगे तो फ़िर हमारे भाग्यमें मृत्यु ही अनिवार्य है । प्रत्येक देशके प्रत्येक समाजमें एक-एक विशेष भातका कुछ विशेपत्व रहता है, उसी भावको अस्फुटित कर देना उस देशके पराण-सद्ारका एक ओे्ठ उपाय समझा जाता है | हिन्दू गातिका विशेषज्ञ है उसकी--धर्मप्राणता” | हिन्दू जातिके “यपहार, उसकी सामाजिक रीतियाँ और उसकी जिनीति या शासन-अणाली सभी धर्मपर प्रतिष्ठित * और यह




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