मारू देवता का मंत्र संग्रह | Marudevta Ka Mantra Sangrah Hindi Anuvad

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Marudevta Ka Mantra Sangrah Hindi Anuvad by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घोर मस्तों का काव्य । $ ये उत्तम माताएँ भथोत्‌ ही ऊपर बतछायी हुईं साध्यो मदिटाओं से पाई वी छू । इन्हें सुमाता ! बद्दा है। दूसरी जो साधारण मदिलादँ होनी दे, व सुमाता नहीं बन समती | इध से रपष्ट दे झि, उपम्त सन्‍्दान दोने के छिपे सयमशीछर बतोर की शायदबछूता दे | महिलाओं के समान वीर अर्लेक्रुत तथा विभूषित होते है । मदतों ये वर्णन भें छोक ग्रार ऐसा यर्णन कराया दे कि, ये पीः हतिव अपने आपको लिया के समान विभू- दिठ बरते ४-६ प्र ये शयुम्मन्त जेनयो थ। पर 14५३3 ) * जि की हएँ मे बोर भपने धरीरों फ्री मजाबट गूर फर छेते है | इम देखो ५ँ क भाधुनिव युगर्मे योगीय प्रणाशोपे' भजुसार सुसम्भ द्तोगेयाले सेनिक भी महिलाओ की तरद ही पूप मनायतिंगार करते हैं । प्रतयप भाभूषण दर फिस्मश्ा इधियार, दरपुछ परदे या कपदा साफ सुथरो, गूव शाइपोछ कर रखे हुए, व्यवस्थित तथा चमढीरे धगाकर ऐ एूप भच्छी तरदइ दीस पड़े इस ढग हे घारण बार णो चाहिएु। एस अमुशाध्नका पाए1य यतंमापवाढीन सेना में स्पष्ट दिसाई देगा दे । मद्दिएाएँ विस प्रशार भाईगे में घारवार णपनी आशृ्ति देखझर पेश्भूपा कर छेतीटे और सा्गापूर्वक साजामिंसार कर घुझोपर दी दूध बन डथाकर बादर चछी थाती हैं, डीझ पैसे दी ये थीर स्िपाद ययेष्ट अरहू? हो रूच दाद-वार या सपपजसे एयमगाने- यारे एथियारों दो घथा आाभूपणाी यो धारण कर यात्रा बरोे निकए पड़ते हैं । यहाँगर, अधुनिर योरीय सकियों है यथय से णया येद में दर्शाये दंग से मझाों पे! बणन में जिरक्षण समानता दियाई देती दे जो कि सचमुच प्रेक्षपीय है। मदनोंदे इस हिंगारके सप्थर्म भौर भी उछ्टेय पाये थाने ई जिममें से दुछ एव डद्धूत किये जात टै, सो देशिए-- यक्षरश ने दुमयन्त मर्या । ( ऋ ७५६1१६ ) ( ३६० ) भोमातर, यत्‌ शुभयस्तें अस्जिमि । ( क्र $1८21३ ) ( १२५) # बन्च-समारग देखो ५ लिये भये हुए शोग जिम प्रड्धार भड एव द्ोडर भष्टी धधमूवा से घुसर बयर (५) साया करते है, उसी प्रकार मशतृमूमि को साता माननैषाक्ष बीर लपने गणदेश से से हुए रहते ८1” मरव्‌ जो पेश- भू करो हैं तथा अपनी जो शोभा बढ़ाते हैं, वह सारी उनके अपने गणवेद्धपर द्वो निर्भर है । मरतों का गणवश डग सय के क्षिय. समान ( कर्यात्‌ युलिफॉर्म ये' तौरपर बगया हुआ ) रहता दै। उन के तो दस्तरास्य एवं बीए भूषण दै, उस से दी उसी चेशमूपा एवं समावद सिद्धू: शो जाती है । ये पीर मरत्‌ चाहे जैधी सूप गएीं कर समझते, भ्रष्ित्तु डड का जो गणवेश निधोरित हो घुछ्ा हो उम्ती से यद भरूट्टति बरनी पदती दे | एस वर्ण से स्पष्ट दे कि, भाधुनिस सनिको के तुक्य ही इन्हें भपना ग्रणरेन्न साएमुमश एप. जगमगोघाणु मजाहर रह्षाय पहला था | इसी बर्णन वो भार भी देखिएु-- स्परायुधास इंप्िण सुनिष्का । उत स्पय॑ तस्व। शुम्भगाना ॥ ( क्र 3१६११) (३११५ ) सस्व चितू दि तन्‍्व- शुम्मम्राना । (क्र ७)५९॥० ) (३८९ ) स्पक्षत्रेमि- तन्य- शुम्ममाया, ! (% ॥1६०५) ( ४८४ ) ४ उध्रए्‌ दषियार धारण करोंदरि, भष्ठ मालाएँ पदनने- यार तथा बेगपूर्वता आगे बढनेवाऊे ये चीर गुद ही अपने बारीरोंकों सुश्नोमित करने दे | यद्थकि ये सुगुप्त जगद् रहो %, तथापि अपनी दारीरगूपा बराबर भ्रश्ुण्ण बगाये रखते ६ भपने अन्दर विद्यमान क्षत्रेजसे घ्ररीक्षो भा को ये उद्विगा छात्ते हैं। इस प्रकार इन यूर्तों में हम इग चीरों ये! विजी बाध्य जश्ञारीरिक भूवा तथा अजय ति के सफ्पमें उछल पाते हैं। पिशा इय सूपिश । (ऋ ३६४०) ( ११५) अनु थ्रिय घिरें। (फऋ १/१६६० ) ( १६७ ) सुचन्द्ध सुपेशर्स वर्ण दुधिरे (ऋ २३४१३) ( ०११ ) मद्दान्त वि राजध । (कर ७ापढा२ ) (२६६ ) दरपाणि चित्रा दद्यों 1 ( ऋऋ ०५१२1११) (२०७) * थे बीर ये दी शोमायमान दिखाई देते दे, बढ आरी झोआ दए में दें, चौ।वियरोगारी घुए्‌र रौवि धारण रे




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