अथर्ववेद का सुबोध भाष्य भाग प्रथम | Atharvaved Ka Subodh Bhashya Bhag -prathama Kand 1 To 5

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Atharvaved Ka Subodh Bhashya Bhag -prathama Kand 1 To 5 by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घट 3० अथववेद वे विषयमें स्मरणीय कथन । (१) अथर्ववेदका महच्च । « मंप्ववेदका नाम “जद्ववेद, अम्ृतवेद, आत्मवेद” आदि दें, इससे यद आत्मशानका वेद दै, यद स्पष्ट है। इसी लिये कहा है, कि-- श्रेष्ठ दर वेदस्तपसो४थि जातो मदाज्ञानां हदये संवभूव ॥ (गोपथ ब्रा १91९) यूतदै भूषि्ठ ब्रह्म यदू भृग्वज्ञिरस । येडक्षीरत से रस । यरे$थर्वाणस्तद्नेपजम्‌ । यद्भेपज तदमृतम्‌। यद्ग्ट॒त तढ़हा ॥ (ग्रोपएपना ३1०४ ) चस्वारों वा इमे बेदा ऋग्वेदो यज॒वेंद सामवेदो अद्धवेद ॥ के ( गोपय श्र २1 १६ ) «.(१) यह श्रेष्ठ बेंद है, श्रद्मशानियोंके हृदयमें यह अखेद रदता दै। (२) शूग्वेगिरित दा अद्य श्ञान है, जो अंगिरस दे बद्दो रस भ्यीत्‌ सत्त्व दे, जो अभ्र्वा दै वह भेषज है को ओपण है जह माइक है, को जद है कही मद है। (३) ऋर्‌, यछु, साप और अक्ष येदी चार बेद दें। अथर्ववेदकों इस वचनमें ' भेषन ” अथात्‌ रीगदोष दूर करनेवाली औषधि, ' अग्इत ? अपीत खत्युक्े दूर करनेका साधन, त्तया “ब्रह्म ! बडा शान कद्दा है ।ये तीन घब्द अयवे- बेदका मदत्त्य स्पष्ट रौतिप्े व्यक्त कर रहे हैं / और देखिये-- शंधर्वमन्त्रसम्भाप््या सर्वसिद्धिमंदिष्यति ॥ व (अयवैर्पारिश्िष्ट ५ ) + अथवेवेद मंत्रदी संप्राति होनेसे सब पुरुषायय सिद्ध दोंगे। ? यह अवकैमग्रोंत्र मदर्व हैं, इस बेदमें ( शातिक कर्म ) शाँति स्पापनझे कर्म, ( पौध्िक कर्म ) पुष्टि बलप्रादि आदिकों ज प्िद्धिके का, ( राजकर्म ) राज्यशासन, समाजव्यवस्था आदि कमेके आदेश द्वोनिके कारण यह वेद प्रजाहितको द॒रश्सि विशेष महत्त्व रखता दै। इस विषयमें देखिये-- यस्य राश्ो जनपदे अथवा शान्तिपारण । निवसत्यपि तत्रापट्‌ व्धेते निरुपद्रवम ॥ (अधर्ेपरिशिष्ट ४ ।६ ) « जिस राजांके राज्यमें अथववेद जाननेवाला विद्वाम्‌ शाति स्पापनड़े क्मपर निरत रद्दता है, बह रा उपद्रवरद्षित होकर बढ़ता जाता दे । पु (२) अथर्व-धाखा $ वैष्पलाद, २ तौद, ३ मौद, ४ शौनवीय, ५ जाजल ६ जछूद, ० अह्मवाद, ८ देवदर्श, ५ चारणवद्य ये यपक्रे नौ शाखामेद हैं । इनमें इध समय विप्पछाद और शीनऊ ये दो संददिताय उपलब्ध हैं, भन्‍्य उपलब्ध नहीं हैं। इनमें थोडात मत्रपाठभेद और सूकक्‍त ऋममेंद भी है, अन्य व्यवस्था आय समान है । (३) अथर्वंके कर्म। $ स्थाढीपाक “- अन्नाप्िद्धि । ३ मेघाजननस्‌ -- बुद्धिक़ी शद्धे करनेका उपाय । ३ अ्रद्मचवैम्‌ -- वीर्य रक्षण, अह्यययतत आदि 1 है पग्राम-नगर-राष्ट्रनवधनम्‌ “- प्राम, नगर, ढौले, राज्य मारे झी श्राति और उनका संवर्धन 1 , ५ पुग्रपण्चधनधान्यप्रजाश्रीझरितरगरपान्दोटिकादिसस्प स्साधकानि-- पत्र, पश्च, धन, धान्य, भेजो, स्री, द्वाी, शोडे, रथ, पालडी आदि ऐश्वरररे झापनोंत्री तिद्वि कररेके उपाय 1




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