सुहागरात भाग - 2 | Suhagarat Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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No Information available about पं. कृष्णकान्त मालवीय - Krishnakant Malaviya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २६ )
है, विवाह और सच्चा विवाह दो शरीरों का शारीरिक विवाह भी नहीं
है, अर्थात् विवाह फा अर्थ इन्द्रियगत-वासनाओं का साधन नहीं है ।
इसके साथ द्वी हम को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि विवाह
निरा दो आत्माओं, जीवों या मस्तिष्कों का कोरा आध्यात्मिक सम्बन्ध
भी नहीं है | विवाह वास्तव में इन तीनों ही का मजमूवा, अचार या
मुरब्वा है । विवाह सुखमय हो नहीं सकता, विशेषकर वर्तमान समय
और थुग़ में, यदि उसके द्वारा दो मस्तिष्कों, आत्माओ, हृदयों और
साथ ही साथ दो शरीरों का भी एक दूसरे में लय नहीं हुआ है ।
विना पति भर पत्नी के जीवनों में ( 110777077 ) स्वरैक्य हुए
हज़ार पाधा-पुरोहित सर पटक, इज्ञार वेदियों पर दम क्यों न वैठाये
जाये और करोड़ों वार ही हम क्यों न श्रमि को साक्षी कर एक दूसरे
का हाथ पकड़े और धर्मतः निबाह का वचन दे , सच्चा विवाह नहीं
होगा, नहीं होगा, नहीं होगा। धर्म, समाज या कानून विवाह को
असली विवाह का रूप दे नद्ीं सकते और न ये विवाह को सुखमय ही
बना सकते हैं | इसे वेद-वाक्य ही समझना चाहिए कि गठ-वन्धन
की गाठ अपने ही सहारे मजबूत रद्द सकती है ओर धर्म, समाज तथा
पाधा-पुरोहित उसे मज़बूत नहीं रख सकते |
विवाद को सुखमय बनाना, पति और पत्नी, विशेष रूप से, पति
के दी अधीन है अन्यथा हम जो चाहें कहते रहें पत्नी सहधर्मिणी का
रूप नहीं घारण कर सकती, वह ससार की नैया की वसबर की खेवेया
नहीं हो उकती और वह एक उच श्रेणी, कोटि और कक्षा की, उच्च
मश्च पर बड़े आदर से बिठाई हुईं एक पवित्र-वेश्या ही रहेगी |
सुद्दागरात को इसलिए कामवासना की तृप्ति का आयोजन सम-
झना दम सव की भारी भूल है और बहुत से अनथों का कारण भी
यही हो रहा है | अगर हम में बुद्धि-हो तो हमारे देश के पति-पत्नियों
के सहश दो अपरिचित व्यक्ति शरीर के नहीं वरन् दो आत्माओं के
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