संस्कार - प्रकाश अर्थात महर्षि दयानन्द सरस्वती प्रणीत संस्कारविधि | Sanskar-prakash Arthat Maharshi Dayanand Sarasvati Pranit Sanskaravidhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हँ£ संस्कार-प्रकाश & मिः। श॑ रोदसी बहती शं॑ नो अद्ठिः शे॑ देवानां सुहवानि संन्तु ॥ ३॥ ऋ० मं० ७। घूं० २५। में० ३॥ शै॑ नो अम्निज्योतिरनीको अस्त शृं मित्रावरुणावख्चिन श। श॑ नः सुद्ठतां सुकृतानि सन्‍्तु श॑ ने इषिरो प्रभिवातु वातः ॥ ४॥ ऋ० में० ७) म० ३४1 मं०४॥ श॑ नो थयावाएथियी पूर्व तो शमस्त- रिक्त दशये नो अस्तु। श॑ न भरोषपीर्षनिनो भंबन्तुं श॑ नो रफंसरपतिरस्तु निष्णुः शा कऋ० में० ७1 सू० ३४ । मं० ५॥ श्र इम्दो पसुमिदयों भर्दु शमा- दित्येभि+रुणः सुइंसः । शै नो खो सटे मिर्जलापः श॑ नस्वष्टाम्नाभिरिह १णोतु 1॥ ६॥ ऋ९ मं० ७। सू० ३४५1 २० ६ ॥| शु नः सोगो “ भवतु व्रह्म श॑ ना श॑ नो ग्रावाणः शमु सन्तु यज्ञाः। थे नेः 'सरुणां पितयो मवन्‍्तु श॑ नाः अस्वः शम्बस्त वेदिं! ॥७॥ ऋ० मं० ७१ सुग्रशमंछ॥... | | श॑ नः सूर्य उस्चत्ां उदेतु-शं नगवतसः प्रदिशे भवन्त । शं नःपर्वता भू वयो भवन्तु श॑ नः” सिन्धव ध्रमु सन्‍्वापः ॥ ८५॥ ऋ९ मं० ७. - यू० ३४५। मं ० ८॥ ध्हू दायक हो। पृथ्वी अपने अमृत उसाव अन्नादि हारा हमको शान्तिदायक हो। ,विशाल पृथ्वी और आा- काश हमको शान्ति-दायक हों । पर्वत हमें शान्ति- दायक हों ओर देवोंके स्त॒ति-गान आदि हमको: शान्ति-दायक हों ॥ ३॥ ज्ष्योतिकी किरणे हो जिसकी सेनाहैं ऐसा अग्नि हमें शान्ति-दायक हों। मित्र वरुण भर. अग्विन्‌ देव हमें शांति-दायक हों। सत्कर्मियोके सत्कर्म हमें शान्दि-दायक हों। गमन-शील वायु हमें शांति-दायक होता हुआ बढे॥ ४॥. * पूदबोक्त मन्‍्तोमें निर्दि् यु, शोर एथिवी हमें शात्ति-दायक हों | ( सूर्य चस्दर द्वारा हमारे देखनेमें” सहायक ) भ्ाकाश हमें शान्ति-दायक हो। जड्गली ओऔषधियां हमें. शान्तिदायक हों । झोकों का; स्वामी दिए हा (14२ ) हमें शन्दिदादक हो ॥ ५ ॥ इन्द्र देव ध्ों द्वारा हमें शान्ति-दायक हो प्रभंसदीय रण सुर्य-विश्णों द्वारा हमें शास्ति- दायके हो । , जलका श्राघ्रांर रद अपनी रुदृता हाराः हमें. शान्तिदायक हो। त्वष्टा हमारी ह्ठुद्ियोंको. इने और हमें शान्दिदायक हो ॥ ६ ॥ : शोम रस, सोम रस न्किक्नने दाला म्राह्ण,- इसे पीसने के पत्थर, यक्ष, यज्षों के उम्भे, झअप-- ।धिययां ओर बेदी येसव हमें शान्तिद्ायक हों॥ ४ ॥ , अत्यन्त तेजोमवसूर्यः हमें शांति देने के लिये. रदित हो। चारों दिशायें, दृढ़ परत, सदी, समुद्र: और जछ ये सब हमें शान्ति-दायक हों ॥ ८॥




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