संस्कार - प्रकाश अर्थात महर्षि दयानन्द सरस्वती प्रणीत संस्कारविधि | Sanskar-prakash Arthat Maharshi Dayanand Sarasvati Pranit Sanskaravidhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हँ£ संस्कार-प्रकाश &
मिः। श॑ रोदसी बहती शं॑ नो अद्ठिः शे॑
देवानां सुहवानि संन्तु ॥ ३॥ ऋ०
मं० ७। घूं० २५। में० ३॥
शै॑ नो अम्निज्योतिरनीको अस्त शृं
मित्रावरुणावख्चिन श। श॑ नः
सुद्ठतां सुकृतानि सन््तु श॑ ने इषिरो
प्रभिवातु वातः ॥ ४॥ ऋ० में० ७)
म० ३४1 मं०४॥
श॑ नो थयावाएथियी पूर्व तो शमस्त-
रिक्त दशये नो अस्तु। श॑ न भरोषपीर्षनिनो
भंबन्तुं श॑ नो रफंसरपतिरस्तु निष्णुः
शा कऋ० में० ७1 सू० ३४ । मं० ५॥
श्र इम्दो पसुमिदयों भर्दु शमा-
दित्येभि+रुणः सुइंसः । शै नो खो सटे
मिर्जलापः श॑ नस्वष्टाम्नाभिरिह १णोतु
1॥ ६॥ ऋ९ मं० ७। सू० ३४५1 २० ६ ॥|
शु नः सोगो “ भवतु व्रह्म श॑ ना
श॑ नो ग्रावाणः शमु सन्तु यज्ञाः। थे नेः
'सरुणां पितयो मवन््तु श॑ नाः अस्वः
शम्बस्त वेदिं! ॥७॥ ऋ० मं० ७१
सुग्रशमंछ॥... | |
श॑ नः सूर्य उस्चत्ां उदेतु-शं
नगवतसः प्रदिशे भवन्त । शं
नःपर्वता भू वयो भवन्तु श॑ नः” सिन्धव
ध्रमु सन््वापः ॥ ८५॥ ऋ९ मं० ७.
- यू० ३४५। मं ० ८॥
ध्हू
दायक हो। पृथ्वी अपने अमृत उसाव अन्नादि हारा
हमको शान्तिदायक हो। ,विशाल पृथ्वी और आा-
काश हमको शान्ति-दायक हों । पर्वत हमें शान्ति-
दायक हों ओर देवोंके स्त॒ति-गान आदि हमको:
शान्ति-दायक हों ॥ ३॥
ज्ष्योतिकी किरणे हो जिसकी सेनाहैं ऐसा
अग्नि हमें शान्ति-दायक हों। मित्र वरुण भर.
अग्विन् देव हमें शांति-दायक हों। सत्कर्मियोके
सत्कर्म हमें शान्दि-दायक हों। गमन-शील वायु
हमें शांति-दायक होता हुआ बढे॥ ४॥.
* पूदबोक्त मन््तोमें निर्दि् यु, शोर एथिवी हमें
शात्ति-दायक हों | ( सूर्य चस्दर द्वारा हमारे देखनेमें”
सहायक ) भ्ाकाश हमें शान्ति-दायक हो। जड्गली
ओऔषधियां हमें. शान्तिदायक हों । झोकों का;
स्वामी दिए हा (14२ ) हमें शन्दिदादक हो ॥ ५ ॥
इन्द्र देव ध्ों द्वारा हमें शान्ति-दायक हो
प्रभंसदीय रण सुर्य-विश्णों द्वारा हमें शास्ति-
दायके हो । , जलका श्राघ्रांर रद अपनी रुदृता हाराः
हमें. शान्तिदायक हो। त्वष्टा हमारी ह्ठुद्ियोंको.
इने और हमें शान्दिदायक हो ॥ ६ ॥
: शोम रस, सोम रस न्किक्नने दाला म्राह्ण,-
इसे पीसने के पत्थर, यक्ष, यज्षों के उम्भे, झअप--
।धिययां ओर बेदी येसव हमें शान्तिद्ायक हों॥ ४ ॥
, अत्यन्त तेजोमवसूर्यः हमें शांति देने के लिये.
रदित हो। चारों दिशायें, दृढ़ परत, सदी, समुद्र:
और जछ ये सब हमें शान्ति-दायक हों ॥ ८॥
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