स्तवनावली | Stavanawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(के) महासती जडावजी पर एक नजर . भूतपूर्व सलचन्द्र सम्प्रदाय में अनेकों प्रभाव शालिनी सतियां हुई हैं | जिन में सतो रंभा जी प्रमुख हैं, उनकी कत्तिपय शिष्याश्रों में बड़ावुजली का एक महत्व पूर्ण स्थान है । आप सेठों की रीयां में व्याही गयी थीं, जहां चाह्य काल में ही पति के देहान्त हो जाने से, आपका संसार सस्तरस्थ टूट गया । वि सें० १६२२ में २४ वर्ष की अवस्था में आपने संयसत अहण किया। झापका जअस्म १८६८ में हुआ था। आपका शारीरिक कद लग्पा, वर्ण गोर और व्यक्तिल प्रभावशाली एवं आकर्षक था। अध्ययन एवं चिल्तन मनन भी गहततम था। श्राप में सहज कवित शक्ति थी को नर जीवन में दुर्लस कही गयी है ! इस तरह एक बिदुष्ी महासती के सभी गुगा आप में मौजूद थे | आपने विभित्म राग रागिनियों एवं पदों की स्वना की । ये स्वनाएं अपदेशात्मक, स्तवनात्मक कथात्मक एवं आध्यात्मिक भागों में बंदी जा सकती हैं। “जैन समाचार के सम्पादक श्री बाड़ीलाल मोततीजाल श॒हू की देख रेख में “जैन स्तवनावली” नाम से आपकी कुछ स्वनाए प्रकाशित हुई थीं जिसकी पृष्ठ संझया २०० तथा पद संख्या १४४ है। इसमें १६३२ से ९६६६ तक की स्वनाएं संकलित है । आपके बिहार ज्ेत्र मुख्यतः जोधपुर, चीकानेर, अजमेर और बंयपुर रहे | भोपालगढ़ में अपनी गुरुणी के स्वर्गवास के पश्चात्‌ से० १६५० में आप लयपुर पधारी और नेत्र की शक्ति क्षीण हो बाने से मोतीसिंह मोमिया के रास्ते पर सेठ सोभागमलजी डट्ढा के मकान में २२ वर्ष तक त्थिख़ास के रुप में रह | लहां क्रमश: तपस्वी श्री बालचन्दजी म०, आयु श्री विनयचन्द्ी मृ० ले विशारद मुनि भरी चंदनमलंजी म० प० मुनि श्री देवीलालली म० पूज्य




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