श्री शिवमहिम्न स्तोत्रम | Shri Shivmahimn Stotram

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Shri Shivmahimn Stotram by स्वामी काशिकानन्द - Swami Kashikanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय गन्धर्वराज पुष्पदन्तविरचित शिवमहिम्नः स्तोञ्का स्मार्स समुदाय में इसना भारी आदर है कि एद्गाभिषेकर्म रुद्रप्चचमाध्यायके स्थान पर तथा स्वतम्त्रर्पेण भी इसका प्रयोग करते हैं। अर्थात्‌ इसे वेदतुल्य ही मानते हैं। भारतं पशञ्चमो वेद:” जंसी प्रसिद्धि है वैसे महिम्नःस्तोत्रकी हितीय रुद्रसुपमें प्रसिद्ध है। इसमें एक कारण विपयगाम्मीर्य है। रदाध्याय- को दद्रोपनियद भी कहते हैं। उसमें सर्वात्मरू्पेण शिव वर्णन है। “कुद्रोपनिषदप्येवं स्तौति सर्वात्मकं शिवम्‌”1 “तमस्ते रद” इत्याद्िमें नमस्कारवचन होनेसे वह्‌ स्तुतिहूप है। भक्तिपूर्ण है- साथ ही जद्गैतशिव- वर्णनात्मक भी है। वैसे महिस्तःस्तोन्न भी “प्रणिहितनमस्यो$स्मि”” “वमो नेदिष्ठाय” इत्यादिसे उक्तार्थको छेकर नमस्कार सहित है। भक्तिपूर्ण है। तथा परमतत्त्ववर्णनात्मक है। द्वितीय रुद्ररूपेण प्रसिद्धिमे विषय गाम्भीय जितना सहायक हुआ उत्तना ही फरत्तू गौरव भी हुआ । भहिस्नःस्तोत्ररचयिता इस स्तोन्नके रचयिताके रूपमें ग्रन्धवेराज प्रुष्पदन्तकी प्रसिद्धि है जो भगवान्‌ दकरके गणोम एक माने जाते हैं। वहाँ तक तो हमारी पहुँच नही है कि हम यह कह सके कि वे गण कितने विद्वान थे और कंसे थे । किन्तु कथा सरित्सागरके अनुस्तार ये ही परुष्पदन्त पार्वतीज्ञापसे वररुचि या काध्यायन नामसे भूतलमें अवतीर्ण हुए जो महंपि पाणिनिके साथ सम्बन्धित थे। अतएवं कथासरित्सागरक अनुसार ये पुष्पदन्त बेही काल्यायत हैं जिस्होंने पाणितीम़ क्षष्दाध्यायी पर विव्वविश्वत बात्तिकग्रन्य की रचना की । हरिवंश पुरणमें भी पुप्पदन्त और पराणिनिकों एक ही जगह नाम ग्रहण पूर्वक चर्णन किग्रा है। एवं अन्य पुराणोमें तथा महा- भारतमें भी ऐसी ही बात उपलब्ध होती है।




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