अथ वेदांगप्रकाश भाग - 8 | Ath Vedangaprakash Bhag - 8

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Ath Vedangaprakash Bhag - 8 by स्वामी दयानन्द सरस्वती - Swami Dayananda Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख्नीप्रत्ययप्रकरणम्‌ २३ | ऋ 1 दीघजि विजहा च छन्दास 1 ११० । आ० ४1 १९ निपावन किया है । ऊसे-दीघजिदह्ी ध्ीघजलिद्ीी शब्द नि पा वे देवानां हव्यमलेट। शब्द नित्य डगीष होने के लिये निपातन किया दे 1 २१० ॥ &+ ( द्कपूतपदान्डप्‌ ॥ १११५ ॥ आ० ४। १। ६० ॥ दिक पृत्रेपद दी जिंस के उस खांगवाची खीलिंग में वच मान प्रातिपदिक से ह्लीप प्रत्यय दो | जले-पराइसुखीः प्रत्यद्सुखी; प्राह्मनाखिकी इत्यादि ॥ सन्‍्१्‌ ॥ ॥ ११२॥ आ० ४ 1 १ 1 6१ ॥ बाइन्त प्रातिषदिक से छीप प्रत्यव होते! जखे--दित्योद्टी: प्रष्टोही; विश्वौद्दी इत्यादित सश*र ॥ सख्याशशोति सावायाम्‌ ॥ ११३॥ अ० ४। १। ६२ ॥ मापा अर्थात्‌ ल्ोकिक[ प्रयोग विषय में सस्ती ओर अशिश्वी ये दोनों डीप_ अत्य- यानत निपातन किये हैँ | जेसे--सख्रीय॑ में च्राह्मणीः तास्याः शिश्वरस्तीति अशिश्यवी | बह मतों यहां भाषा शरण इसलिये है कि--सखे सप्तपदी भव, यहां न हो ॥ ११३ ॥ जातेरख्रीविषयादयोपब्ात्‌ ॥ ११४ ॥ आ० ४। १। ६३ ॥ स्रीलिंग में वत्त मान जो यकारोपधवर्ज्ञित ज्ञातियांची अकारान्त और नियत स्वीलिंग न दो, ऐसे प्रातिपदिक से झीय धत्यव होवे। जेसे--छुछुटी: खुकरीः ब्राह्मणों; ध्रुषली नाहायनी; चारायणी: बहद्ुची | यहां जाति ग्रहण इसलिये दे किं--मुएडा। “अख्यीविषय इसलिये है कि-- मक्तिका । अयोपबरा इसलिये है कि--क्षज्िया; वेश्या । 'अनुपसजैन' श्रहण इसलिये है क्रि--बहुकुछुटा: वहुसूकरा, इससे छीव_ न छुआ ॥ ११४ ॥ वा०-यापघग्रतिपेधे हयगवयमसुकयमत्स्यसनुष्याणाम प्रतिषेघः ॥ १ १ पर यकारोपध का निषेध जो खजन्र स किया है, धहां इय गवय मुकय मत्स्य और मनुष्य प्रातिपदिकों का निपेध् ् का निषेध न डोवे, अर्थात्‌ इनस छीप शत्यय हो । जेखे--हयी गवर्यी; मुकबी; मत्सी; मचुपी 1 सर ॥ पाककणपणोेपुष्पफलसूलवालोत्तरपदाच्च ॥११६॥ अ० ४४१६४॥ न्त्रीलिंग में वत्त मान दिस प्रातिपदिक के उच्तरपद पाक आदि शब्द हो, उससे बीप अत्यव हों । जस--ओंदनपाकी: सुद्गपर्णी: पटपर्णीः शह्नपुष्पी; चहुफली दममूली; गायाली ॥ श7८ ॥




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