वैदिक साहित्य का इतिहास | Vaidik Sahity Ka Itihas

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Vaidik Sahity Ka Itihas by राममूर्ति शर्मा - Ramamurti Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ममिका दि वेद भारतीय धर्मं-दर्शन एवं प्राचीन कवित्व की भश्रपार निभ्नि हैं। इसके तिरिक्त भ्थवंवेद की ऐन्द्र जालिकता एवं श्रीषधि विज्ञान भी कम महरुव- पूर्ण' नहीं है। साथ'रण पाठक के लिये यह कह देवा उपयुक्त होगा कि बेदिक साहित्य से केवल ऋणश्वेद सहिता, यजुर्वेद सहिता, सामवेद संहिता एवं ग्रथवें- वेद संहिता का ही श्राशय नही है, प्रव्युत बेदिक वाहुमय के श्रन्तगंत सं हि- ताश्रों के ग्रतिरिक्त ब्राह्मण-साहित्य, आर्ण्यक-साहित्य और उपनिषत्‌ साहित्य भी आता है। इस वेदिक वाह्मय के तात्पयं-बोध के लिये वेदाज्भ साहित्य की वैसी ही उपादेयता है जैसी कि जीवकी द्वरीर रक्षा के लिये उसके समस्त भ्रद्ध-प्रत्यज्धों की | वेदाज़-साहित्य के अन्तगंत सुत्र, शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त छुन्द श्रोर ज्योतिष शास्त्र भ्राते हैं । संहिताभ्रों का शाखा-भेद यज्ञ की भ्रावश्यकता को ध्यान में रखकर संकलित संहिताओं का फ्छल-» पाठन श्रक्षण्ण बनाये रखने की उदात्त अभिलाषा से व्यास जी ने श्रपने चार शिष्यों को वेदों का अ्रध्यापन किया था । पैल को ऋग्वेद, कवि जेमिनि को सामवेद, वैद्यम्पायन को यजुर्वेद तथा सुमन्तु को अथवंवेद का अध्यापन कराया । इन मुनियों ने गुरुमुख से भ्रधीत संहिताश्रों का अपने शिष्य-प्रशिष्यों में पूर्ण प्रचार किया, जिससे यह वेद कल्पतरू विविध शाखा सम्पन्न बसकर घिफुल विस्तार को प्राप्त हुआ है । इन विविध शाखाओं में कहीं-कहीं तो उच्चारण के विषय में मतभेद था झौर कही कतिपय मन्त्रों को संहिता में ग्रहरा करने के विषय में । शाखा के साथ चरण शब्द भी सम्बद्ध है । ग्राजकल दोनों का प्रयोग प्रायः समाना्थ में किया जाता है, परन्तु ग्राकद्ी- माधव के टोकाकार जगद्धर के अनुसार चरण शब्द का भ्रर्थ है--कक़्यिय




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