मन्त्रशास्त्रोपदेशक | Mantra Shastro Padeshak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका । ण्
है यहापर केवल मन्न, तंत्र, यत्र विचाही कुछ प्रकाशित कींगई हैं ।
इस विद्याकी परक्षा हमने कईमार देखी है अनेक मंत्र तंत्र करने के
कारण से हम बहुत से अद्धत ३ कार्य अपनी इढि से देखते हैं
अगीत् मन्त्रस चोरके शुख्त में रुधिर निकछ जाता है जछ, चार
राख, उदद, जौ, आदि मन्त्र से पढ़े लाकर हर एक कार्यपर अपना
तेज वछ शीम दिखादेते है ) हमने यहातक देखा है कि मन्त्र से सांप
विच्छू पकड डेते हैं तथा मन््त्रों से इनका विष उतार देते हैं, मस्त्र से
दूर देश की वस्तुतत्काल मंगा देंते हैं । और यह विदा मुस़तमान जाति
में भी अधिकतासे फैली हुई है और मत्र विधा का भ्रचार नैपाछ राज्य
चीन राज्य मोट राज्य आदिको में भी भछी प्रकार से छारहा है
परन्तु अब प्र्वतमय की तुल्यतासे न्यूनही है ॥
बस्त हम इतनाही छिखते हैं (कि-तेश्र विधाको मिथ्या प्रतिपादन करने
में कोई भीक्तापरथ्य नहींहैं मिप्तके काये हम नित्यप्रति आप्त पाप्त होते
देखतेहें उसको हम किस भकार से झूंठा कहसक्ते हैं । हमकी उस विधा
को आंतरीय नातेंकी न जानकर उसपर से विश्वास उठाना मूलताका
काम है| हा परीक्षा करनायुद्धिमानोंका काम है शास्त्र में छिसा है कि
(यंणरेकृस यदि न सिख्यति कोअदेष३, अयोत् पुरुषाथ करने से उसकी बिधि
अनुप्तार यत्षकरनेसे नो मत लिद्ध न होवे तो कोई अपनीही मूल समझना
चाहिये मत्रकी दोष नहीं देना चाहिये, वयोकि-कर्दूगुणसाधन वैगुण्यात् पूर्व
समयके अनुसार आजकल इसविद्याकाप्रचार अत्यन्तम्पूनसे न्यूनहे और
,कहीसेबतीव योडा३ देखने में आताभी है पर तौमी चीडानही हे।पहिले
यह विद्या गुप्त वी ओर अब उिपराये नहीं उिपता है बहुतसी पुम्वरके
भत्र शास्रकी अनेकानेक यम्नालयों में मुद्ित और प्रकाशित हुई हैं और
आए सब महाशय दृर्धीगोचर करते हैं परतु आप इस अनुपम ( मत्नतिद्धि)
कभी अबंछोकन करेंगे और अपने मुत्तकण्ठ से इसको महिमाका
भण्डार सेल्गे क्ज्वार् ! वाह |! वाट !। कयाही ओए्ठ रख है ९ बस
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