पातन्जल - योगसूत्र का विवेचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन | Patanjal - Yogasutr Ka Vivechanatmak Evm Tulanatmak Adhyayan

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Patanjal - Yogasutr Ka Vivechanatmak Evm Tulanatmak Adhyayan  by डॉ॰ नलिनी शुक्ला - Dr. Nalini Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका धर गों पं (१) भारतीय दशनों का महत्व तथा उनमें योगशास्त्र का स्थान (अ) अन्य-देशीय दर्शनों से भारतीय दर्शनो की तुलना तथा अविच्छिन्नता पाइचात्य एवं पौरस्त्य दर्शनों की तुलना से पर्व दर्शन क्या है-प्रह जानना आवश्यक है। दृश्यते अनेन इति दर्शनम'--इस व्युत्पत्ति के अनुसार, जिसके द्वारा देखा जाय, वह दर्शन है। वस्तु के तात्विक स्वरूप का आल्वीक्षिक्री पद्धति से ज्ञान ही दर्शन- द्वारा दर्शनीय या ज्ञेय है। हम कौन है? क्या है? कसे उत्पन्न हुए है? यह जगत्‌ क्या है ? समस्त जड-जगमात्मक जगन्‌ का मूल क्या है? इसका वास्तविक स्वरूप क्या है? जगत्‌ का स्रष्टा जड है या चेतन ? वास्तविक सुख की उपलब्धि किस प्रकार हो सकती है, इत्यादि समस्याओं का समुचित समाधान दर्शन का सुख्य लक्ष्य है । पाध्चात्य देशो मे दर्शन के लिये 'फिल।सफी' दब्द का प्रयोग होता है। फिल्ँंस (प्रेम या अनुराग) तथा सोफिया (विद्या)--इन दो ग्रीक शब्दों से निर्मित->-फिलसफी की व्युत्यत्तिलम्य अर्थ विद्यानुराग है। अतः दर्शन के प्रति, पाश्चात्य एवं पौरस्त्य विचारको के दृष्टिकोण भिन्न है। भारतीय दशेनो (मोक्ष दशनो) के लक्ष्य एव पाश्चात्यों की फिलॉसफी के लक्ष्य मे भी भेद है। पाश्चात्य दर्शन जिज्ञासा की शान्ति में ही पर्यवसानलाभ करते है। वे ज्ञान के लिये ही ज्ञान की खोज मे निरत है। प्राचीन युग के प्रधान तत्वजानी प्लेटो दर्शन का मूल आइचये' को मानते है। (फिलॉसफी 'बिगिन्स इन वन्डर) । सम्पूर्ण यूरोपीय दर्शन उस आश्चये की तृप्ति के प्रति ही अग्रसर है । भारतीय दर्शनों मे तत्वज्ञान दर्शन का चरम लक्ष्य नही, अपितु चरम लक्ष्य मुक्ति है। क्लेश-सकुल ससार से मोक्ष ही सम्पूर्ण भारतीय दर्शनो का एकमात्र लक्ष्य है।




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