भावप्रकाशनम् | Bhavaprakashanam

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Bhavaprakashanam by मदन मोहन अग्रवाल - Madan Mohan Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका | पाँच रत्नाकर में उपलब्ध होता है। इस आधार पर शारदातनय १२०० से १२५० ई. तुक उत्पन्न हो गये होगे । शिगभूपाल, कुमारस्वामी तथा कल्लिनाथ आदि के ग्रन्थों में अधिकांश स्थलों पर संगीत एवं रस के सम्बन्ध में भावप्रकाशन से उद्धरण उद्धृत किये गये है। शिग- भूपाल का काल १३३० ई.' तथा कल्लिनाथ' एवं कुमारस्वामी का काल १५वीं शताब्दी स्वीकार किया गया है। अतः इन परवर्त्ती ग्रन्थकारों के काल की निम्नतर सामान्य सीमा १३०० ई. स्वीकार की जा सकती है। इससे स्वत: सिद्ध हो जाता है कि इनके पूर्ववर्ती शारदातनय १३०० ई. से पूर्व ही अर्थात्‌ १२००-१२५० ई. तक अवश्य उन्नत हो गये होंगे । इस काल के विषय में शका उठ सकती है कि शारदातनय अपनी विषय- सामग्री के लिए यत्र-तत्र कल्पलता (कल्पवलली)' नामक एक ग्रन्थ का आश्रय ग्रहण करते है और कल्पलता का काल १२वीं शताब्दी से पश्चात्‌ का है, अतः इस आधार पर भावप्रकाशन का प्रणयन कल्पलता से भी पश्चात्‌ अर्थात्‌ १९वीं शताब्दी से अत्यन्त परवर्त्ती काल मे हुआ होगा । किन्तु ध्यातव्य रहे कि 'कल्पलता' नामक दो ग्रन्थ उप- लब्ध हैं। एक के लेखक है अरिसिह और दूसरे के देवेश्वर । परन्तु क्या यह सम्भव नही हो सकता कि शारदातनय द्वारा उद्धृत 'कल्पलता' इन दोनों के अतिरिक्त कोई अन्य ही रही हो, जिसकी रचना १२वीं शताब्दी के पूर्व ही हो चुकी थी। क्‍योंकि 'कल्पलता' के सन्दर्भो द्वारा रस, भाव आदि कतिपय विषयों का जैसा प्रतिपादन गारदातनय ने किया है, वह अरिसिह तथा देवेश्वर द्वारा प्रणीत 'कल्पलता' में अभि- लक्षित नही होता है । अरिसिंह की 'कल्पलता' में शब्द एवं अथे तीन प्रकार के वणित है, जबकि शारदातनय द्वारा संकेतित 'कल्पलता' में चार प्रकार के शब्द-अर्थ कहे गये है । इस विषय में शारदातनय कहते है कि 'कल्पलता' में वाणित चार प्रकार के शब्दार्थो को मम्मट तथा स्वयं (शारदातनय) ने प्रदर्शित किया है ।' इस कथन से 'कल्पलता' का काल मम्मट से भी पूर्ववर्तती सिद्ध होता है और मम्मठ तो शारदातनय के पूवंवर्त्ती हे ही। 'रस-रत्न-दीपिका' के रचयिता अल्लराज द्वारा उद्धुत भावप्रकाशन के उल्लेखों के आधार पर भी शारदातनय का स्थितिकाल १२५० ई. ही निर्धारित होता है। अल्लराज ने स्वयं को हम्मीर का पुत्र बताया है। यह हम्मीर मेवाड़ का चौहान राजा हम्मीर प्रतीत होता है, जिसके विषय में जयचन्द्र सूरी द्वारा 'हम्मीर महाकाव्य' की रचना की गई है। इसके अनुसार हम्मीर का काल सम्बत्‌ १३३९ अथवा १२८३ ई. था। अतः हम्मीर के पुत्र अललराज का स्थितिकाल १४वीं शताब्दी के आरम्भ में निर्धारित किया जा सकता है। अल्लराज ने “रस-रत्न-दीपिका' में अपने पूत्वर्त्ती १ पाह्रणफ णी कांप 20217209 09 +. ५. 18918, 010. 430. २ संगीत-रत्नाकर, भूमिका, पृष्ठ २० । ३ भावप्रकाशन, प्रृष्ठ १३१, पंक्ति ४; पृष्ठ १७४, पंक्ति १८। ४... ग्रांडा0०09 ० $द्काउंफएं 20070, 9. 4. 102, (०1८०9, 1960, ४०]. 1, 797. 259-260, ५ भावप्रकाशन, पृष्ठ १७५, पंक्ति १८-२० ।




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