आग और आँसू | Aag Aur Aansoo

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Aag Aur Aansoo by शकुन्तला भार्गव - Shakuntala Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सपीत्तरे २ दुभगी भाई दाश की प्राह, पिता की क्‍या स्थिति थी ! रही विश्व में महा ग्रभागिन भ्रपने में यद्यपि निश्पम, राजकुमारी, जिसे पमिले श्रे सोने के तन, श्रशन, वसन ! मिट्टी की तृध्णा से जिसका जीवन जल-जल जीर्ण हुआ ! हरित दूर्वा का आाकप॑ण जिसे खीचता नित्य रहा ! किन्तु न उस तक पहुंच सकी ऊँचे महलों में पत्ती, बढ़ी ! जन-साधारण-जीवन--स्पर्दध मृगजल-सी ही जान पड़ी ! जीवन-तृप्णा ने अन्तर को जब-जब टेरा, करी पुकार ! विकल, छुटपंटाई बन्दी-सी विकट जड़े थे सारे द्वार ! दीवारों-द्वारों से व्करा घायल इच्छाएँ रोई । उस वेभव की चमक-दमक में गरीड़ा की झाहें खोई




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