भटको नहीं धनंजय | Bhatako Nahin Dhananjay

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Bhatako Nahin Dhananjay by पद्मा सचदेव - Padma Sachadev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्त्री को पाकर कितनी प्रसन्‍न होगी। हम भिक्षाटन के लिए चले जाते है तो मां अकेली हो जाती है अब द्रोपदी के सग बाते करेगी। माँ कितनी ख़ुश होगी आज! माँ बहू की पाकर निहाल हो जाएगी। राजकुमारी द्रोपदी अब माँ की बहू होगी। भीम प्रसन्‍न हो गया। उसने सोचा हिडिम्बा के निवेदन पर जो मने उसे पुत्र प्रदान किया उससे मा को क्या सुख मिला। मै ही जान छुडाकर भागा, पर क्या हिडिम्वा राक्षती होकर कभी मनुष्यों जेसा व्यवहार करती? फिर उसने सोचा-पाण्डवों को देखकर स्त्रियां का मोहित होना स्वाभाविक ही हे। भीम चल रहा था जैसे एक युग चल रहा धा। अपने पीछे एक नयी सृष्टि की रचना होती वह कहाँ देखता? द्रीपदी को यह वता देने के वाद कि मे अर्जुन हूँ, अर्जुन भी अपनी प्रसन्नता छिपा नहीं पा रहा था! दोनों बार-बार एक-दूसरे को देखकर मुस्करा देते। द्रोपदी बार-वार लजा जाती। सगमरूपी इस राह पर दोनो के हृदय मिल रहे थे। पानी के बुलबुले इकट्ठे होते एकाकार होकर झूल जाते। पहले दो धाराएँ थी-इसका कोई प्रमाण न मिलता। राह मे एक छोटा सा नाला आया। भीम ने एक ही छलःँग म॑ पार कर लिया। अर्जुन ने द्रोपदी की तरफ हाथ बढाया। द्रोपदी ने दोनों हाथ बढा दिये। अर्जुन ने उसे दोनो हाथो से उठाकर नाले के पास खडा कर दिया! द्रोपदी गर्व से भर उठी। अर्जुन के यह हाथ अब इस जगत्‌रूपी पमुद्र से उसे पार उतार देगे। सुख से भर उठी द्रोपदी। विश्यास-अविश्वास मे झूलता एक नाम अर्जुन। बचपन से ही कितनी बार सुना हे अर्जुन, वही अर्जुन मुझे जीत लाया हे। बचपन म॑ तो सब कहते थे ऐसा कोन भाग्यशाली होगा जिसे द्रोपदी मिलेगी। भाग्यशाली तो द्रोपदी है जिसे अर्जुन मिला हे। जब सबको पता चलेगा कि मुझे अर्जुन ने स्वथवर में जीता हे तो सभी मेरे भाग्य पर ईर्ष्या करगे। इधर अर्जुन भी हवा मे उड रहा था। उसे स्वयवर का भव्य मण्डप स्मरण हो आया। इतने लोगो की दृष्टि सिर्फ कृष्णा पर थी। समस्त आऊर्षण का केन्द्र कृष्णा अब सिर्फ मेरी होगी। मेरे जैसा भाग्यशाली कौन है? अर्जुन ने बड़े स्नेह से द्रोपदी से कहा। सामने जहाँ से धुआँ-सा उठ रहा हे, वहीं एक कुम्हार के घर हम ठहरे हे देवी । द्रोपदी ने देखा । द्वार पर अपना लट्ठ रखकर भीम ठिठकां। सामने युधिष्ठिट आर नकुल, सहदव हाथ-मुँह धांकर सुस्ता रहे थ। युधिष्ठिर ने कहा, “आ गये भीम, चलो माँ को वताएँ।” भीम हाथ-मुँह धोने लगा तो अर्जुन भी द्रीपदी के सप ऑगन मे आ गया। द्रौपदी नये स्थान पर हिरणी की तरह चारो ओर देखने लगी। अर्जुन ने जल की गगरी से हाथ पाँव धोकर द्रीपदी को जल दिया। “देवी आप भी हाथ मुँह धो ले।” युधिप्ठिर ने सोचा मा को एकदम चकित करूँ1 उसने द्वार पर खडे होकर कहा, “माँ हम भिक्षा लेकर आये ह।” अटको नहीं धनजय 25




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