विश्वास बढ़ता ही गया | Vishwas Badhata Hee Gaya

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Vishwas Badhata Hee Gaya by शिवमंगल सिंह - Shaivmangal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छोटे मोटे प्राधातों से हार नहीं सकता मेरा मन जग का कलरव अमर, झमर गति के शंकर का ताण्डव-नत्तेंन एक चरण को ठम्क, विदव के सामूहिक जन-मन का ऋदन जब तक विहग वालिकाए ऊपा से होली खेल रही हैं- नव घुग के स्वणिम विहान को रोक नहीं सकते उलृक-गन, छोटे मोठे श्रोघातों से हार नहीं सकता मेरा मन )




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