योगशतकम् | Yogshatkam

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Yogshatkam by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषाटीकासमेत । (ण) इर्ड़, इनका काढ़ा सेवन करनेसे कृफ़वात ज्वर,आमझूछ दूर होकर अधि दीप्त तथा पाचनकों सामथ्य होती ६ द्रा्मामतापपटकाब्दतिक्ताक्ाथ' सश- स्याकफलोपिदध्यात । प्रलापशूच्छाख्म- दाहशोषतृष्णान्वित [पंत्तणंवृज्वर च ॥ ७ कालीदाख, मिंठाय, पि्तपापड़ा; नागरमोथा, छुटकी, अपछतासका गूदा; इनका काढ़ा प्रलाप; सच्छों; अम+ दाह; झोप: तथा ठृष्णायुक्त पित्तज्वरम हित करनेवाठा हूं ॥ निदिश्घिकानागरिकायूतानां क्लाथ पेंबे- न्पिजितापप्पछाक् । जाणज्वररावक [सशूलधासायिमायादितपानसु ॥ ८ ॥ अटकटेया, सोंठ, गिठोय: इनका काढ़ा पीएलका चण डाठकर पींवे तो जीणेज्वर अरुचि कास झूठ श्वास अधिकी मंदता अर्दितिवाय पीवस इन रोयोंकों दूर करता हे ॥ ८ ॥ पंचज्वरका उपचार । दुराठपापपटकर्रेयंडुशानिबवासाकटट:- रोहिंणीनास, । काथ पिंबेच्छकरयाव- गादं तृष्णास्नपित्तज्व॒रदाहसुक्ता' 1 ९ ॥ घमासा, पित्तपापड़ा, . प्रियंगु: चिरायता; अडसाः




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