शब्द | Shabd

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Shabd by त्रिलोचन - Trilochan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बेन बिनारे की चट्टाने, बहती धारा, 5 दोनो दा स्वभाव मुभगों समान सगता है-- सरस, फ्ठोर भाव ते बर जीव जगता है थाँदा ये मागरिया हृदय में, मैंने प्यारा उसे हर तरह से पाया है उसे सहारा अगर चाहिए तो भ्रपनो का, बार डंगता है अपने भमिषारात्रत से, स्‍तर पग्ता है अपनेपन से जि पर उसने तनमन वारा अस्ताचलगामी बिरणें, बेन की लहरियाँ, मिलजुल कर नव गान गा रही थी वल स्वनसे भावों मे तल्लीन, उसे सुनने बो जैसे धात समीर हो गया था, भरदृश्य भप्सरियाँ नृत्यशील थी नीलावर में पभपने मन से, नीलाचल ही दिख्वता था हम भूले ऐसे 26 सूरज का श्रकाश पडता है नए मुखों पर, भाँखें उनका चित्र उतार लिया करती हैं अपने झाप, बताने में यह सब डरती हैं-- क्या जाने क्या शब्द भर्थ हो , प्राप्त सुख्ो पर कोई डीठ गडा दे, दुनिया भले दुखो पर ध्यान नद्दे पर सुख की ईरए्या मे मरती है झाठो मम भ्ौर लबी साँसे भरती है-- मैंन दृश्य यही देखे हैं सभी रुखो पर नीले प्रासमान मे सबने सीस उठाए नही दूव, विशाल पेड अथवा पदहाड हो, चीटी हो गडा हो, साँभर हो या हाथी या मानव हो. कोई भी हो-सभी भुठएण हुए मरण क्यो हैं मर्द भाषण हो _ दहाड़ हो, सभी चाहते हैं. अपने जीवन के साथी 25




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