अथर्ववेदसंहिता भाषा भाष्य | Athrvaved Sanhita Bhasha Bhashya Khand 2

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Athrvaved Sanhita Bhasha Bhashya Khand 2  by जयदेवी शर्मा - Jayadevi Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १८ ) शिरोमणि पुरुषों को रखने, सेनासंज्ञालन करने का भी उपदेश है । जो पाठक यथास्थान भाष्य में देखेंगे । ; (४) दोदके विनियोगशझारों ने कुछ सूक्तों को ऐसे २ कामों में विनियोग किया है जिनसे प्रयोक्ता की दुरिच्छा पूरी हो । परन्तु दृढ़ विश्वास है कि वेद डन दुष्ट कार्यो का उपदेश नहीं करता। उन सूुक्तों को हम संक्षेप से यहाँ विवेचना करते हैं-- (१) ख्रीदोर्भाग्यकरणु--अथव्व का० ५ सू० १४ ॥ इस सूक्त को कौशिक ने खी ओर पुरुष के दौर्भाग्य करने के लिये लिखा है | सायण ने केवल स्त्री को घर से निकाल कर उसके गहने कपड़े छीन कर मां बाप के घर आजीवन छोड़ रखने परक सूक्त का अर्थ ल्या है। चह बहुत असंगत एवं विरुद्ध है । इसका विवेचन हमने प्रथम खण्ड की भूमिका में कर दिया है । पाठक वहाँ ही देखें। वस्तुतः वह सूक्त + म कन्या स्वीकार, २ य कन्या दान भर, ३ य विवाह द्वारा सौभाग्योत्पादन का प्रतिपादन करता है । (२ ) ख्रीवशीक रण--अथर्व का० २। सू० ३० ॥ यह सूक्त स्री को वश करने के लिये बृक्ष की छाल, तगर, अंजन, कूठ भादि घिस कर घी में मिला कर स्त्री के शरीर पर छगाने में लगाया हुआ है । वस्तुतः इस सूक्त में एक दूसरे के मन को आकर्षित करके परस्पर वरण करने का उप- देश किया है । (३ ) सपलीजय---अथव का० ३ । सू० १८ ॥ द्वारा सपत्नी या सौत को चश करने के लिये वाणपर्णी ओपधि के पत्तों को छाल बकरी के दूध में पीस, मिला कर उसको सेज पर डालने के लिये लिखा है। परन्तु उस यूक्त में किप्ती ओोपधि का नाम नहीं है । केवल उत्तानपण्णां, देवजूता, सहस्वती, सासहि, सहम.ना, सद्दीयप्ती भादि शब्दों का प्रयोग किया है। अनुक्रमणिक्राकारने इसका 'डपनिषत्सपत्नी बाधन देवता' लिखा है । इसकी ऋपिक्ता इन्द्राणी है। अब पाठक स्वय॑




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