अलबेरूनी का भारत भाग 1 | Alberuni Ka Bharat Bhag 1

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Alberuni Ka Bharat Bhag 1  by सन्तराम - Santram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रर ) दोनों ही अलबेरूनी ऐसे बरबर के लिए अगम्य थे। परन्तु मुसलमानों के अ्रधिकार में भारत का जितना भाग था उसमें से, और शायद गज़नी में युद्ध के कैदियों में से भी, उसे उसकी आवश्यकता को पूरा करने वाले अनेक पण्डित मिल गये थे | » से को (्‌ ग्रयथकार आर बचच्ध धम्म | अलग्रेरूनी क॑ समय का भारत बौद्ध न था, पोराणिक था। ग्यारहवीं शता८दी क॑ प्रथम अधभाग में मध्य एशिया, खुरासान, अफगानिस्तान, ओर उत्तर-पश्चिमी भारत से बौद्ध धर्म्म का नामोनिशान सवंधा मिट चुका प्रतीत होता है; आर यह एक अद्भुत बात है कि अलबेरूनी ऐसे जिज्ञासु को बाद्ध-धम्म के विषय में कुछ भी माल्रूम नहा, ओर न इस विपय की जानकारी ज्ञाभ करने के लिए ही उस के पास कोई साधन हो । बोद्ध-धर्म्म को उसने बहुत क्रम चर्चा की है, आर जो की भी है वह सब इरान शहरी की पुस्तक के आधार पर की है। इरान शहरी ने स्वयम ज़र्कान की पुस्तक से नकल किया है । कहते हैं बुद्ध ने चूडामणि नामक एक पुस्तक रची थी। बोढ़ों या शमनियों ( श्रमणां ) को अलबेरूनी ने मुहम्मिर अथात्‌ लाल वस्ों वाले ( रक्तपट ) लिखा है। बोद्ध त्रिमूति, बुद्ध, धम्मे, संघ आदि का वन करते हुए वह बुद्ध को बुद्धोदन लिखता है । बेद्ध ग्रंथकारों में चन्द्र नामक एक वैयाकरण, सुप्रीव नामक एक ज्योतिषी ओर उसके एक शिग्य का ही उल्लेख अलबेहनी करता है। ग्रलबेरूनी लिखता हे कि उस के समय में राजा कनिष्क का बनाया हुआ एक भवन पेशावर में माजूद था। इसका नाम कनिष्क-चेत्य था | यह वही स्तूप मालूम होता है -जिस के विषय में कहते हैं कि




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