मङ्गलकोष | Mangal Kosha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mangal Kosha by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका। ३* परिश्रम सफल करनेके हेतुसकलकलाध्यक्ष मुन्शी नवलकिशोर वर्मा के सुद्गालय में सीसाक्षरों से मुद्रित होने के लिये थातादी अब यह अन्य अतिसावधानता ते छपकर श्रीमहाशय की अलु- मति से तय्यार हुआ इस कारण सम्पूर्ण विद्धानों की उत्तम सेवा में निवेदन हे कि जिस शब्दकी लिपि वा अर्थ आदि में रंचक विभेदवा अशुद्धता पावें उसको कृपादृष्टि से शुद्ध करलेवें मेरी मूर्खतापर ध्यान न देवें क्योंकि उस अन्नानमूचिने पून्वेक़ि साहब वीरेश पराक्रमी की अमिक्षता देख अपनी मूदता विदित की ॥ यवासोदा॥ साहब पाय भ्रवीन सब जनायत विज्ञवा। पत्यी क्‍मीधीन सत्र पायत सखत्तार मेह ॥ १॥ माषर गुणंगण चक लखि भागत भवपृद्ता । यपारेसि छाशियट सम नहिं आवत िउथ्द्दी ॥ २ ॥ ५ « दोहा॥ अतिप्रतीण गाह॒क चतुर निमप्रति उरव समोद $ औ्ीउपियर विज्ञानमेय छयश छगी खहकोद ॥ ३ ॥ रे डे छ्न्द्‌ है सवेया छन्द ॥ बौरति सोहत देश विदेश प्रसि्ध महाग॒य शान बड़ाई। साहब कालिय औनिंगधी रवि देखियई कुपिरेनि पाई ॥ मृदखूगामे अबूस निशुज्षर*मद रहे सर ठाम छिपा+। ज्ञान गुणादि मरोन प्रपुल्तित वक्त संरोगर देत दिखा: ॥४॥ ५ दोहा ॥ पद्यमान कीरति तिमल कवि परशिडित मठुहारि । धयवाद भाषत से आदरदानि विचारि ॥ ५ ॥ सुनि अ्रभिज्ञता स्वामी चितउछाड़ रअप्रिग्ञान । रच्योवोषभगलसुरुचि निनभललतिसमानेा। ६ ॥ औरालिनवीनिंग जू गपन गमपुरोहे फीत । बोष छपनवी आस त्व मनसा में तमिद्ीन ॥ छ 6 अथ रचत जो भ्रम किहों जायहु भा बेगम । देययोग मे तुरतही सभी ताठु पुनि सान ॥ ८ ही करुणालय ताही समय विदाचय शुणराशि । नेंसफाल्टसाहद यहा आये सुयशप्रवाशि ॥ £€ के में डैरेदर ग्रववा ये विद्ावेरि अचारि | पातवीदजनुउन्प्रिसा सदवहूँ लीन उबारि ॥ २० शुणगाइव धनदायकहि ते में निम्र कोश | जायदिखायहनिमत्रमुदि तासशरणकरिपेश ॥ १२४ # #.-. प्र + न्‍




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now