संस्कृत स्वयं शिक्षक भाग - 1 | Sanskrit Svayam Shikshak Bhag-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[२ ]] जनता फे सम्मुख उसी धठुभव की हुई अपनी विशिष्ट पद्धति को इस पुस्तक द्वारा रखना चादइता हूँ । हिन्दी भर्थाव आये भाषा फे कई वाक्य इस पुस्तक सें भाषा की रीति से फुछ विरुद्ध पाए जायेंगे, परन्तु वे वसे इस लिये लिखे गये हैं कि थे संस्कत वाक्य से प्रयुक्त हुए शब्दों के क्रम के अनुकूल हों तथा किसी कसी स्थान पर संस्कृत फे शब्दों का प्रयोग भरी उसके नियमों के अलुसार नहीं लिखा है तथा शब्दों की संधि फहीं भो महीं की गई । यह सच सल्िये किया है कि पाठकों को सुभीता दो और उनरा संह्कृत में प्रवेश सुगमता पूर्वक हो सके । पाठक यह भी देखेंगे कि जेंसा प्रवेश अधिक २ हो गया है चैसा वैसा शब्दों का क्रम भी यथा- योग्य हो गया है अर्थात्‌ जो भाषा की शैली की ग्यूनता पहिल्ले पार्दो मे है वह भागे के पाठों में नहीं है । भापा शैन्नी की छुछ न्‍्यूनता सुग़मता फे लिये जान बूफ कर ग्क्‍्पी गई है, इसलिये पाठक इसकी ओर ध्यान न भेकर अपना अभ्यास जारी रक्खें ताकि घमका संस्कृत-मन्दिर में प्रवेश स्रीभोति हो सके ! पाठकों को उचित है छि दे न्‍्यून से न्यून प्रतिदिन एक घण्टा इस पुस्तक का हध्ययन किया करें और ज्ञो जो शब्द हें सनवा प्रयोग बिना किसी प्रकार के संत्रोच के कग्ने का यज्ञ करें इससे ,उमकी उन्नति प्रतिदिन होती गहेगी । ज्ञिस रीति का अवलंबन हस एुस्तक में किया है बह न केकता सुगम दै परन्तु निःसन्देह स्वभाविक है, और स्वभाविक होते के कारण ही इस रीति से अल्प काल में और थोडे परिध्म से बहुत लाम होगा 1 यह में निश्चयपू्वंक कद्द सकता हूँ कि प्रतिदिन एक घण्टा




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