ब्रह्मपुराण [हिंदी अनुवाद सहित ] | Brahma Purana [Hindi Anuvad Sahit]

Brahma Purana [Hindi Anuvad Sahit] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ भूमिका बरके वैष्णव अणु से सतार की पाल्तात्मक सामग्रं। बने है। फिर सह्टारात्मक अणु [विस्फाटक पदाथ) एकत्र करके रौद्र अणुओ के पिण्डीकरण से ससार के विनाश को शक्ति बनों है। इस प्रकार ब्राह्मी, वैष्णवे। और रोदा क्षणुशविव--य दीद प्रकार के अणु बताये गये हैं। यदि वतमाद अणुपर क्षण समिति नर्व नतम वैज्ञानिक उपलब्ध साधना से इनका गभीर परीक्षण बरे ता वतपान काल भी पुराण-काल वे समान वैज्ञानिक महृत्तव को प्राप्त कर सबतो है। पुराणा मे सिद्धपीठस्थछी भूमण्डल के विभाग पुष्यसरितायें महानद सरोवर मरुस्थल/ ओर शस्य” बयासल भुभाग--इत्पादि का वणन आया है। इनसे प्रचुर मात्रा मे ब्राद्मी वेष्णवी अ(र रौद अणुशक्रि बे! विषय मे जानकारी प्राप्त की जा सकते है। स्वन्दयुराण में एक कया आती हैं कि वकर ताम का एक राजजुमारः थी जिसका मुख बकर, के मुख के समान था। वढ़ शारीरिक निर्माण के कारणा का ज्ञान प्राप्त करके अपने मुखमण्डद को वैज्ञानिक अक्रियाओं ब' ढारा उसी शरीर म बकरी के सुख से सुन्दर मानवमुख क रूप म बदलकर चन्द्रमुरी हो गई। उस राशकुमारी के आठ भाई और एवं बदन थी। उसके पिता ने सम्पूण देश को नो भाणों मे विभकत करके प्रत्येक: को एव एक खण्ड दे दिया। तव स भारतवर्ष नवखण्ड नाम से कहा जाने छगा। उतर पृथक पृथक खण्डा मं अमेक प्रकार के भूगमभगत घातुआ का वर्णन है। इसके अगिरिका पुराणा मं आकाशवारी पग्रनक्षत्रा की दूरी और उसकी गति, शिपुमारचक्र शुव॒स्थात उत्तरायण दक्षिणादण ऋ:ु मास आदि का विज्ञांत भी निरस्त है। पुराणा बा प्रमुख उदृरय दद बे” रत्त्वा का जन साधारण तक पहुँचाना है। वेद मे सूजरूष म जे। बातें बही गई है उन्ही वे व्याख्या पुराणा मे भाष्यरूप से क, गई है। यह बात पुराण-रचयिता व्यास जे में स्वय कही दै--इतिहसपु राणाम्यां बेद समुयब हयेत्‌' अर्थात्‌ इक्रिद्ास (रामायण महाभारव) और राणा को सदायतां से वेदा वा भर्य समझता चाहिए। यह कारण है वि वदा स जिन बाता के सूचना मात्र हैं पुणणा भ उपास्याता मे' दाण उन्ही वा विस्तार है। जैव 'इुखेद बे 'इद विष्शुदिचिकरे श्रेषा लिदधे पदम्‌ विष्णु र' अवतार की सूचना मात्र है पर वामनपुराण से त्रिविक्रम सामक वामतावतार के प्रसग मे तथा क्षय पुरोणा भ भी विष्णु क वामना बतार का विस्तार से वणन रिथा गया है। इसे तरह अयववेद (क०७० ८० सू० श्र० हे।४॥५) म राजा पृथु का पुथ्वेंदाहल सलप मे वणित है पर श्र८्मदभागवत से उस।/ का विस्तृत रूप से वणन है। पुराणां मे जितनी सरलता से घम अय, काम और मोदा रूप चतुदगं की सिद्धि का साधन मिलेगा उतना अन्यत्र नही है। १८ पुराणा मे परापक्ार वा सद ८र्मों वर साइभूत पुष्य बताया यया है और परपीडा का महा पाप) यह पाप-पुष्य वे। परिभाषा झानद॒ता का कितता सुन्दर और मौलिय भाचरण बवा रह, है। पुराणा मे सत्य का अल्वषण बरते मैं; दृष्टि से, स थवाद। हूरिइच द्व आदि ने उपाख्यात से ज्ञात हाना है वि उन्हाने साथ मे सूल्यवत्ता का कितना ओमसातू तिया था। सती अनसूया सीता सावितत सुतन्या आदि दवियां में अपने विष्ठां आर साप्र सं अलोक्तरि घमलार कै सिद्धि प्राप्त क, थी । भगवान्‌ राम न ज॑दतर्या स उनसे इरिद बे दिशेषदा और मयादा-पाटन के. मर्यादप्रूण एवं हृदबग्राह। शिक्षा मिलते है। राम न जनमत वा सम्मान अब आपनी धमपली संता मीता का छाथ्ट दिया था। पैतृत़् अनुशासत ओर आता का आदग स्थिर करत * लिए शग्प शा भी त्याग डिया एवं अत्याचार का शमन करन ब' लिए एक स्वेच्छाचारं। अधिनायत्' का भिस्यस स्था। शोद्यम * चरित्र मे जा खाद है तथा जिस उच्च भूमिक्रा पर समाज व ज॑ दत का मैंवि३ सामाजिर छोरितितः भामित' स्थावह्मारिर आध्यात्मिश और आशिमौसिर स्वर प्रतिव्यित बरते बवद अद्वित/य शदय है. उसका दर्धन




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