जवाहर - जीवनम् | Jawahar - Jivanam

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Jawahar - Jivanam  by रामशरण शास्त्री - Ramasharan Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भर इस सन्दर्भ में 'कमला-परिणय *, 'इन्दिरा प्रियदर्शिनी! और “स्वर्गारोहणम्‌! कै अध्याय द्र॒प्ठव्य हैं । काब्य के प्रारम्भ मे मगलाचरण के रूप में भारत-माता वी बन्दना करता हुआ कवि इसकी सम्पूर्ण आध्यात्मिक, प्राकृतिक, धामिक, साह्कृतिक, ऐतिहासिक भौर राजनैतिक विभूतियों को नमन करता है। 'जवाहर-वन्दनम्‌ वा उत्तरा् बहुत ही सुन्दर कविता है | इसी प्रकार “काइ्मीर-सुपमा' को कुछ पक्षितर्यां सचमुच हो काव्य वी नँसमिक श्लोमा से मण्डित हो उठी हैं --- * बहम्तमनिलम॑न्दु्द्‌हन्त मदनानलेः:। पूजित पुष्पराणंश्च क्झी बोक्लि-कूजितस ॥ 3 म्गानिस्ताने ज् रस्योयानेः. पयोयानर्गानिस्तानेश्च गूंजितम्‌। ६ हि पु का कि कक फल फुल्लैश्चलदुल: सलिले कलन्कलायितस्‌ ॥ ओर लगता है--निम्नलिखित कुछ पक्तियाँ जेसे कबि-कुल-गुर बालिंदास की उपमा-प्ग्रद्ध निर्ग पक्तियों री उपमित होते को भकुल- उत्तण्ठ हो रही हो :-- ४ शर-गौरर-नीरं द्वि गौर-पादीर-सौरभस्‌ । शुघ्रन च्षीराब्धि-द्विण्दीरं हंस मानस-तीरजस ॥ स्पस्प-चुद्धिददंजातो लेपने चातिदुस्तरे । परमय्राफलो5प्येप॑ भविष्यामि प्रशंसितः ॥। चरित्रगौरपेणव. प्रयासः सकलों मस्‌ । दल्तभंगोद्दि नागानाँ रलाध्यो गिरि-पिदारणे ॥7 जवाहर-जेन्म की कथा एक जन-श्रुति पर आधारित है। इस प्रसग में वि ने वडी ही कुशलता से एक ब्रह्मतीन तपस्वरी का उत्यमण भर श्री जवाहर के रूप मे उसरा अयतरण अकित किया है :-- ०ज्ञावों जवाहरों योगी राजग्रद्न-गसमन्यितः | मुख्तारसनः (मोलो लाख.) समुदभुतो मशणिरूपो ज्ञगादरः 17 प० मोतीवाल नेहश और स्परुप्रा रानी का राजा दितीप और गुदक्षिणा के रूप अरन भी बहुत हो समीचीन है । करि ने वाल्मीकि, व्यास, घालिदाल प्रमृति महाकवियों द्वारा निदिष्ठ वामिक मर्थादाओं का पुनरायलन




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