शास्त्रवार्तासमुच्चय | Sashtravartasamucchay

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Sashtravartasamucchay  by हरिभद्र सूरी - Haribhadra Suri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्या० क० टीका एवं हिन्दी विवेचन ] है द्वितीयस्तु गगन-धर्मा-5धर्मास्तिकायानामवगाहक-गन्व-स्थावद्रव्यसंनिधानवो ज्वगाहन--गति-- स्थितिक्रियोत्पत्तेरनियमेन स्यात्पर्॒त्ययः, मूर्तिमदमृतिंमदवयवद्गव्यद्योत्पाधलाद अवगाइनोी- दीनां स्यादिकत्विकः स्यादनेकत्विकश्चेति भावः । तहुक्तमू-[ सम्मतिं श्र०-१३० | “८ सामाविओ वि सम्र॒दयकउ व्व एगत्तिउ व्य होजाहिं | आगासाईआणं ति्हं॑ प्रपचओडणियमा ॥ १ ॥”! इत्ति। [ स्वराभाविकोत्पाद की द्विविधता ] हि स्वाभाविकोत्पाद के दो भेद हैं-(१) समुदयजनित और (२) ऐकत्विक | उन में जो उत्पाद सूर्तिमदृद्रव्यात्मक अवयबो से निष्पन्न होता है वह समुदयजमित कहा जाता है। उस से भिन्न स्वभावजनितोत्पाद को ऐकत्विक कहा जाता है। इन में प्रथम है अश्नादि का उत्पाद यहा यह विशेष ज्ञातव्य है कि घटादि द्रव्य भी द्वितीयतृतीयादि क्षणो में पहले के जैसा ही नहीं रहता किन्तु पुर्वक्षणोत्पन्नपर्यायविशिष्टात्मना उत्तरक्षण मे उस का नाश होता है झौर विशिप्द का नाश विशिष्टोत्पादव्याप्य होता है इसलिये उन क्षणों मे नवीनपर्यायविशिष्ट घटादि का उत्पाद भी होता है और यह उत्पाद पुरुषव्यापार से अजन्य और मुत्तिमद्द्रव्यात्मक अवयवो से श्रारव्ध होता है अ्रतः यह भी स्वाभाविक समुदयजनित उत्पादरूप है। यह भी जान लेना जरूरी है कि सू्तिमदृद्व- व्यावयवारब्घत्वरूप जो समुदयजनितत्व है वह मूर्त्तावयवरसंघोगक॒तत्व रूप नहीं हो सकता क्योकि ऐसा मानने पर स्थूलद्रव्य के विभाग से होनेवाले परमाणु आदि के उत्पाद में अव्याप्ति होगी। किन्तु, मुर्त्ता- वयवनियतत्वरूप है और विभक्तावस्थ परमाणुरूप श्रवयव में भी अ्रवस्था विशेष की अपेक्षा सुर्त्ता- वयवनियतत्व है । श्राशय यह है कि किसी स्थूलद्रव्य का विभाग होने पर जब उस के परमाणु विकीर्ण हो जाते हैं-उसत अवस्था में उन में मत्तवियव का सम्बन्ध नहीं रहता किन्तु बह जिस स्थृूलद्वव्य के विभाग से विकीर्ण हुआ है उस स्थृलद्रव्य की अवस्था की अपेक्षा मृत्तवियव से सम्बद्ध होता है क्योकि उस स्थूलद्रव्य के श्रविभक्तावस्था मे उस के घटक सभी परमाणु परस्पर सम्बद्ध होते हैं । [ ऐकत्विक स्वाभाविक उत्पाद का स्वरूप ] ऐकत्विक स्वाभाविक उत्पाद कथच्वित्‌ परप्रत्यय यात्री श्रन्याधीनवृत्तिक होता है, क्योकि आकाश, धर्म और श्रधर्म रूप श्रस्तिकाय द्रव्यों मे अवगाहक, गनन्‍्ता और स्थाता द्रव्य के सनिधानमात्र से, अर्थात्‌ अवगाहनादि क्षियाश्रो के आधारतापर्याय के बिना अवगाहन, गति श्रौर स्थितिरूप क्वियाओ की उत्पत्ति का नियम नहीं है । तात्पयें यह है कि श्रवगाहनादि क्रियाएँ मुत्तिमदवयव द्रव्य श्रौर अमूत्तिमदवयव द्रव्यरूप द्रव्यहय से उत्पन्न होती है, इसलिये ऐकत्विकस्वामाविक उत्पाद केवल ऐक- त्विक ही नहीं होता किन्तु कथच्चित्‌ ऐकत्विक और कथच्चित्‌ अनेकत्विकरूप होता है । कहने का आशय यह है कि आकाशादि मे अवगाहकादि द्रव्य के सनिधान से आकाशादि द्रव्य मे अबगाहनादि- अधिकरणतारूप पर्याय उत्पन्न हो जाने पर यदि तारश पर्याय विशिष्द गगवादि से ही कारणत्व की विवक्षा की जाय तो उस विवक्षा से श्राकाशादि का उत्पाद ऐकत्विक है और उक्त अधिकरणतारूप #& स्वाभाविको5पि समुदयकृतो वेकत्विको वा भविष्यति । जआाकाशादिकाना त्रयाणा परप्रत्ययोडनियमातु ॥ १॥॥




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