मरुदेवताका मंत्र संग्रह | Marudhevataka Mantra Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वीर
मरुतोंका काव्य ।
वीररसपूर्ण काउ्यके मनन से उपलब्ध बोध ।
हम पहले ही मरुत्-देबता के मन्त्रों का भन्वय, आर्थ
भोर टिप्पणी यहाँपर दे चुके हैं | पदों के भर्थका विचार,
सुभाषितों का निर्देश एवं पुनरुक्त मन््न्नों का समन्वय भी
ध्यानपूवेक हो चुका है | अब हमें संक्षेप में देखना है कि
डन सब का ध्यानपूर्वेक भष्ययन कर लेनेसे हमें कोनसा
बोध मिल सकता है | इस मरुत-काब्य में अन्य काव्योंकी
अपेक्षा जो एक अनूडी विभिन्नता दीख पइदी है, बंद्द यों
है कि इस काब्य में-
शी
महिलाओंका वर्णन नहीं पाया जाता है।
किसी भी वीर-गाथा सें नारियों का उछ्लेख एक न एक
ढंग से अवश्य हीं उपलछूब्ध द्वोता है। पंचमहाकाव्य या
अन्य काब्यों का निरीक्षण करनेपर ज्ञात होता है कि उन
में वीरों के वर्णन के साथ ही साथ उनकी प्रेयतियों का
बखान अवश्य हीं किया है | खियों का वर्णन न किया
हो ऐसा शायद पुक भी वीर-काब्य नहीं पाया जाता है ।
यदि इस नियम का कोई अपवाद भी हो, तो उससे इस
नियमकी ही घलिद्धता होती है, ऐसा कहना पडंगा। रूग-
भग २७ ऋषियोंने इस मरुद्वेवबता-विषयक काव्प का सूजन
किया है ऐसा जान पडता है ( देखो पृष्ठ १९४ ) और
अगर इस संख्या में सप्तर्षियों का भी अन्तर्भाव किया जाथ
तो समूचे ऋषियों की संख्या ३४ द्वो जाती हे ॥ यह बडे
ही आश्रय की बात हे कि इतने इन ३४ ऋषियों के निर्मित
__ काव्य में एक भी जगह मरुतों के स्न्रेणस्व का निर्देश नहीं
किया है । ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि ऋषि स्थत्रेणट्व
का वर्णन ही न करते थे, क्योंकि इन्हीं ऋषियों ने इन्द्रका
वणेन करते समय ॥कनद्रीं लंशोंमें उस पर स्त्रेणत्वका आरोप
किया है। जिन ऋषियों ने इन्द्र का स्व्रण्व बतलछाने में
आनाकानी नहीं की, वे ही मरुतों का वर्णन करनेसें उसका
छेश मात्र भी उछेख नहीं करते हैं।इससे यह स्पष्ट होता
है कि मरुतों के भनुशासनपूर्ण बर्ताव में स्त्रेणव्व के लिए
बिककुछ जगह नहीं थी । ध्यान में रहे कि मरुत् इन्द्र के
सैनिक हैं जोर ये अपने सेनिकीय जींवन में स्त्रेणव्व से
कोसों दूर रहते थे | भाज इम योरप के तथा भास्टेलिय।
सदृश सभ्य गिने जानेवालछे राष्ट्रों के सेनिकों का अवक्ोकन
करते हैं, तो पता चढता है कि यदि वे नगरों में घूमने-
फिरने छूगें भोर कहीं महिछाओों पर उनकी निगाह पड
जाए तो असभ्य एवं उच्छुंखछतापूर्ण बताव करने में द्विच-
किचांते, नहीं । यह बात सबको ज्ञात है, अतः इस सम्बस्ध
User Reviews
No Reviews | Add Yours...